Literature Talk : दिल्ली में साहित्य का तूफान: सुशी सक्सेना की किताबों पर चर्चा ने खोले अनसुलझे रहस्य!
क्या आप जानते हैं सुशी सक्सेना की किताबों में छुपा है नारी जीवन और विज्ञान का वो गहरा राज़? जानें बीती रात के धमाकेदार साहित्य कार्यक्रम की पूरी कहानी, जहाँ लेखक, विद्वान और पाठक हुए स्तब्ध!
दिल्ली: किताबों की दुनिया में बीती रात 9 बजे एक ऐसा साहित्यिक आयोजन हुआ, जिसकी गूँज केवल मंच तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसने साहित्य जगत में एक नई हलचल पैदा कर दी है। श्रीराम सेवा साहित्य संस्थान भारत के प्रतिष्ठित मंच पर, लेखिका सुशी सक्सेना की बहुचर्चित पुस्तकों पर चर्चा का कार्यक्रम सफलता पूर्वक संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम की मुख्य आकर्षण थीं लेखिका सुशी सक्सेना स्वयं, और संस्थान की ऊर्जावान संस्थापिका दिव्यांजली वर्मा।
यह आयोजन इसलिए भी खास था, क्योंकि यह वर्तमान दौर में साहित्य, विज्ञान और राजनीतिक विषयों के जटिल संगम को पाठकों के बीच एक सरल और सुलभ माध्यम से प्रस्तुत करने का एक दुर्लभ प्रयास था। साहित्य और कला जगत के विद्वान, स्थापित लेखक, और उत्सुक पाठकों की भारी उपस्थिति ने इस बात पर मुहर लगा दी कि सुशी सक्सेना की रचनाएँ पाठकों के दिलों में कितनी गहरी छाप छोड़ चुकी हैं।
अतीत के आइने से आज की बात: क्यों हैं सुशी सक्सेना की रचनाएँ कालजयी?
भारतीय साहित्य का इतिहास सदियों पुराना है, जहाँ प्रेमचंद की सामाजिक यथार्थवादिता से लेकर महादेवी वर्मा की मानवीय संवेदनाओं तक ने पाठकों को झकझोरा है। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, सुशी सक्सेना की कलम आज के दौर के सामाजिक यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं को एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ मिलाती है। कार्यक्रम के दौरान, उनकी पुस्तकों पर विस्तार से चर्चा की गई, जो मुख्य रूप से तीन महत्वपूर्ण आयामों पर केंद्रित थीं:
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Women's Life - नारी जीवन की नई परिभाषा: उनकी रचनाओं में नारी जीवन की चुनौतियाँ, सशक्तिकरण और बदलते परिदृश्य को अत्यंत संवेदनशीलता के साथ दर्शाया गया है। यह केवल समस्याओं को नहीं उठाता, बल्कि समाधान और भविष्य की राह भी सुझाता है।
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Science View - वैज्ञानिक दृष्टिकोण और साहित्य का मेल: सुशी सक्सेना की एक बड़ी विशेषता यह है कि वे जटिल वैज्ञानिक विचारों और तर्कों को सरल भाषा में पिरोकर साहित्य के माध्यम से प्रस्तुत करती हैं। यह उन्हें समकालीन लेखकों से अलग और विशिष्ट बनाता है।
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Beyond Politics - राजनीति से परे का यथार्थ: उनकी रचनाओं में राजनीतिक विषयों की परतें भी खुलती हैं, लेकिन उनका फोकस सत्ता की राजनीति से हटकर, आम आदमी पर पड़ने वाले सामाजिक और आर्थिक प्रभावों पर रहता है।
वाचन और संवाद: जिसने बांधा हर श्रोता को!
चर्चा के दौरान एक सबसे मनमोहक क्षण वह था, जब लेखिका सुशी सक्सेना ने अपनी लोकप्रिय पुस्तकों के कुछ अंशों का वाचन किया। उनकी सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण भाषा में गहरी बात कहने की अद्भुत क्षमता ने हर श्रोता को सीधे संवाद करने का अनुभव कराया। वाचन के बाद जब उन्होंने अपनी कुछ कविताएँ सुनाईं, तो पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
श्रोताओं ने भी उत्साहपूर्वक अपनी प्रतिक्रियाएँ साझा कीं। कई पाठकों ने बताया कि कैसे सुशी सक्सेना की किताबों ने उन्हें सामाजिक मुद्दों पर एक नया चिंतन का आयाम दिया है। एक पाठक ने टिप्पणी की, "उनकी लेखनी ऐसी है, जो पढ़ने वाले को सिर्फ़ जानकारी नहीं देती, बल्कि सोचने पर मजबूर करती है।"
साहित्य की निरंतरता का संकल्प
कार्यक्रम का समापन करते हुए, संस्थापिका दिव्यांजली वर्मा जी ने सभी उपस्थित विद्वानों और महानुभावों को धन्यवाद दिया। उन्होंने सुशी सक्सेना की लेखन शैली की मौलिकता और हिंदी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान की हृदय से सराहना की। उन्होंने कहा कि ऐसे बौद्धिक और संवेदनशील आयोजनों की निरंतरता ही हमारी सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत को जीवित रखेगी।
यह कार्यक्रम एक बार फिर इस बात को सिद्ध करता है कि आज के डिजिटल युग में भी, साहित्य और पुस्तकें पाठकों के दिलों में एक विशेष स्थान रखती हैं, और सुशी सक्सेना जैसी लेखिकाएँ इस परंपरा को नई ऊँचाई दे रही हैं।
क्या आप सुशी सक्सेना की उन रचनाओं के बारे में जानना चाहेंगे, जिन्होंने कार्यक्रम में सबसे ज्यादा चर्चा बटोरी?
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