Ranchi Uncertainty : बाबूलाल मरांडी ने हेमंत सरकार को घेरा, JPSC और जैक अध्यक्ष पद पर जल्द नियुक्ति की उठाई मांग!
बाबूलाल मरांडी ने झारखंड में जेपीएससी और जैक अध्यक्ष के खाली पदों को लेकर हेमंत सरकार पर हमला बोला। पढ़ें क्यों लाखों छात्रों का भविष्य अधर में लटका है!
झारखंड के राजनीतिक माहौल में इस वक्त एक बड़ी बहस छिड़ी हुई है। राज्य के प्रमुख आयोगों, जेपीएससी और जैक, के अध्यक्ष के पद खाली होने के कारण लाखों छात्रों का भविष्य अनिश्चितता के साए में है। इस मुद्दे पर अब पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने हेमंत सोरेन सरकार को आड़े हाथों लिया है और मुख्यमंत्री से इन पदों को जल्द से जल्द भरने की मांग की है। बाबूलाल मरांडी का कहना है कि छात्रहित और रोजगार सृजन किसी भी सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए, लेकिन इस समय छात्रों को जो अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है।
जेपीएससी और जैक अध्यक्ष पद पर खालीपन:
झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) और झारखंड एकेडमिक काउंसिल (JAC) दोनों ही महत्वपूर्ण संस्थाएं हैं जिनके अध्यक्ष पद लंबे समय से खाली पड़े हैं। जेपीएससी के अध्यक्ष का पद बीते छह महीने से रिक्त है, जबकि जैक के अध्यक्ष का कार्यकाल हाल ही में समाप्त हो गया। इसके कारण न केवल प्रशासनिक कार्यों में रुकावट आई है, बल्कि लाखों छात्रों के भविष्य पर भी संकट मंडरा रहा है।
लाखों छात्रों का भविष्य अधर में:
बाबूलाल मरांडी ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि जैक अध्यक्ष के पद का रिक्त होना लाखों छात्रों के भविष्य को अधर में लटका देने वाला है। करीब 21 लाख छात्रों की मैट्रिक, इंटर और अन्य बोर्ड परीक्षाएं निर्धारित समय पर होनी चाहिए थीं, लेकिन अध्यक्ष के पद की कमी के कारण ये परीक्षाएं विलंबित हो सकती हैं। इससे छात्रों को अगले सत्र में नामांकन लेने में भी कठिनाई का सामना करना पड़ेगा, जिससे उनकी पढ़ाई और करियर प्रभावित हो सकता है।
JPSC के पद के खाली होने का भी असर:
बाबूलाल ने जेपीएससी के अध्यक्ष पद का भी जिक्र किया, जो पिछले वर्ष अगस्त से रिक्त है। इस पद का खाली होना कई महत्वपूर्ण परीक्षाओं को अटका रहा है, जिससे हजारों अभ्यर्थी मानसिक और आर्थिक दबाव में हैं। इन अभ्यर्थियों ने वर्षों तक कड़ी मेहनत की है, लेकिन अब उनका भविष्य असमंजस में है। बाबूलाल मरांडी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मांग की है कि इन दोनों आयोगों के रिक्त पदों पर जल्द से जल्द नियुक्ति की जाए ताकि छात्रों और अभ्यर्थियों को राहत मिल सके।
क्यों है यह मुद्दा इतना महत्वपूर्ण?
झारखंड में शिक्षा और रोजगार से जुड़ी समस्याएं पहले से ही गहरी हो चुकी हैं। ऐसे में आयोगों के प्रमुख पदों का खाली होना राज्य सरकार की नाकामी के रूप में देखा जा रहा है। बाबूलाल मरांडी का यह हमला सिर्फ हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ नहीं, बल्कि उन लाखों छात्रों और अभ्यर्थियों के पक्ष में है, जो अपनी पढ़ाई और नौकरी की उम्मीदों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं।
इतिहास और वर्तमान:
झारखंड राज्य की स्थापना के बाद से यहां पर प्रशासनिक स्तर पर कई बार नियुक्तियों में देरी हुई है, और यह मुद्दा समय-समय पर उठता रहा है। कभी शिक्षक भर्ती में देरी, तो कभी राज्य आयोगों के कार्यों में लापरवाही, ये समस्याएं हमेशा से ही छात्रों और नौकरीपेशाओं के लिए सिरदर्द रही हैं। बाबूलाल मरांडी का यह बयान उसी निराशा का परिणाम है, जिससे राज्य के लोग जूझ रहे हैं।
बाबूलाल मरांडी की मांग:
बाबूलाल मरांडी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से स्पष्ट रूप से कहा है कि वह जल्द से जल्द दोनों आयोगों के अध्यक्षों की नियुक्ति करें। उनका मानना है कि यह छात्रों के भविष्य के साथ-साथ राज्य की प्रशासनिक प्रक्रिया को भी प्रभावित कर रहा है। उनका कहना है कि इस गंभीर मुद्दे पर तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए ताकि छात्रों का भविष्य सुरक्षित हो सके।
झारखंड में शिक्षा व्यवस्था और सरकारी नियुक्तियों की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। बाबूलाल मरांडी की यह मांग और उनके द्वारा उठाए गए सवाल न केवल राज्य सरकार के लिए, बल्कि समग्र राज्य की जनता के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुके हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य सरकार इस मुद्दे को लेकर कितना सक्रिय कदम उठाती है और जल्द से जल्द आयोगों के रिक्त पदों पर नियुक्ति करती है।
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