Pune Conference: ऑटोमोटिव इंडस्ट्री की चुनौतियों पर भारत समेत दुनियाभर के विशेषज्ञों ने किया मंथन!
पुणे में आयोजित तीन दिवसीय ऑटोमोटिव सेक्टर वर्ल्ड कॉन्फ्रेंस में भारतीय और वैश्विक विशेषज्ञों ने ऑटो इंडस्ट्री की चुनौतियों और संभावित समाधानों पर चर्चा की। जानिए पूरी खबर!

इंडस्ट्रीऑल ग्लोबल यूनियन द्वारा आयोजित तीन दिवसीय ऑटोमोटिव सेक्टर वर्ल्ड कॉन्फ्रेंस में दुनियाभर के विशेषज्ञों और यूनियन नेताओं ने शिरकत की। टाटा मोटर्स वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष गुरमीत सिंह तोते और महामंत्री आरके सिंह इस अहम कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने पुणे के हिंजावडी पहुंचे। उनके साथ जुस्को श्रमिक यूनियन के अध्यक्ष रघुनाथ पांडेय भी शामिल हुए। इस कार्यक्रम में भारतीय ऑटोमोटिव उद्योग के भविष्य और चुनौतियों को लेकर गहन चर्चा की गई।
ऑटोमोटिव इंडस्ट्री की वैश्विक चुनौतियाँ और समाधान
कॉन्फ्रेंस के दौरान भारतीय ऑटोमोटिव इंडस्ट्री को लेकर कई अहम विषयों पर चर्चा हुई। विशेषज्ञों ने बताया कि कैसे यह उद्योग वैश्विक संकट, नई तकनीकों, और यूनियनों के बदलते स्वरूप से प्रभावित हो रहा है। इंडस्ट्रीऑल ग्लोबल यूनियन की सहायक महासचिव क्रिस्टीना ओलिवियर और यूएसए से जेसन वेड (यूएडब्ल्यू) जैसे दिग्गजों ने अपने विचार रखे।
भारत से संजय वाधवकर (एसएमईएफआई), किशोर सोमवंशी (एसईएम), और आशुतोष भट्टाचार्य (इंडस्ट्रीऑल ग्लोबल यूनियन) जैसे दिग्गज भी इस मंच का हिस्सा बने। पैनल चर्चाओं के दौरान भारतीय यूनियन नेताओं ने उद्योग की मौजूदा समस्याओं और उनके संभावित समाधानों पर प्रकाश डाला।
तकनीकी बदलावों से यूनियनों पर प्रभाव
तकनीकी प्रगति और ऑटोमेशन के कारण श्रमिकों की नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है। कॉन्फ्रेंस में इस मुद्दे को लेकर कई विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे। थिलागम रामलिंगम (इंडस्ट्रीऑल ग्लोबल यूनियन, क्षेत्रीय अधिकारी) ने बताया कि कैसे भारतीय यूनियनें इन चुनौतियों का सामना कर सकती हैं। वहीं, पैनल चर्चा में एसएमईएफआई के अध्यक्ष एसडी त्यागी, जुस्को यूनियन के अध्यक्ष रघुनाथ पांडे और ऑल इंडिया इंटक के महामंत्री संजय कुमार सिंह समेत कई बड़े नामों ने हिस्सा लिया।
ग्लोबल ऑटोमोटिव इंडस्ट्री की प्रमुख समस्याएँ
मार्टिन लुंडस्टेड (वोल्वो एबी, सीईओ), डॉ. लोरेंजा मोनाको (यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन), और एड्रियन हर्मीस (आईजी मेटल, जर्मनी) जैसे विशेषज्ञों ने बताया कि वैश्विक स्तर पर ऑटोमोटिव सेक्टर किन चुनौतियों से गुजर रहा है।
विशेष रूप से, इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) ट्रांसफॉर्मेशन, कार्बन फुटप्रिंट में कमी, और ऑटोमेशन के बढ़ते प्रभाव जैसे मुद्दों पर गहन चर्चा हुई। कार्यक्रम के दौरान 'जस्ट ट्रांजिशन' यानी न्यायसंगत बदलाव को लेकर भी खास बातचीत हुई, जिससे श्रमिकों और उद्योग के बीच संतुलन बना रहे।
भारतीय यूनियन लीडर्स का बड़ा योगदान
इस कार्यशाला में टाटा मोटर्स वर्कर्स यूनियन के महामंत्री आरके सिंह, अशोक लीलैंड के आर. सेंडिल कुमार, वोल्वो इंडिया एम्प्लॉइज यूनियन के श्रवण, और डेमलर इंडिया एम्प्लॉइज यूनियन के सेल्वा गणपति जैसे दिग्गजों ने हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने भारतीय श्रमिकों की स्थिति और उनकी बेहतरी के लिए किए जा रहे प्रयासों पर चर्चा की।
क्या यह कॉन्फ्रेंस भारतीय श्रमिकों के लिए लाभदायक होगा?
तीन दिनों तक चली इस कॉन्फ्रेंस में विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों ने श्रमिकों के अधिकार, वेतन असमानता, और नई टेक्नोलॉजी के प्रभाव जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा की। ऐसे में भारतीय यूनियनों को इससे कई महत्वपूर्ण सीखें मिलीं। भारतीय श्रमिकों की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए इस तरह की कॉन्फ्रेंस भविष्य में भी बेहद जरूरी हैं।
पुणे में आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में भारतीय ऑटोमोटिव इंडस्ट्री के लिए कई महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए गए। इसमें श्रमिकों की भलाई, नई तकनीक से उत्पन्न खतरे और यूनियनों की भूमिका को लेकर अहम चर्चा हुई। आने वाले समय में यह कॉन्फ्रेंस भारतीय श्रमिक संगठनों और ऑटोमोटिव सेक्टर के लिए कितना फायदेमंद साबित होगा, यह देखने वाली बात होगी।
What's Your Reaction?






