Albert Ekka: अमर गाथा, 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के छक्के छुड़ाने वाले झारखंड के लाल, अकेले ही बंकरों को किया नेस्तनाबूद
परमवीर चक्र विजेता लांस नायक अल्बर्ट एक्का की जयंती पर उनके उस रोंगटे खड़े कर देने वाले पराक्रम की पूरी कहानी यहाँ दी गई है जिसने 1971 में पाकिस्तान के अभेद्य बंकरों को धूल चटा दी थी। एक साधारण आदिवासी युवक के 'महानायक' बनने और अंतिम सांस तक दुश्मनों से लोहा लेने के इस ऐतिहासिक बलिदान को जानकर आप भी गर्व से भर उठेंगे।
जमशेदपुर/गुमला, 27 दिसंबर 2025 – भारतीय सैन्य इतिहास में कुछ नाम ऐसे हैं जो समय की धूल में दबने के बजाय और भी चमकदार होकर उभरते हैं। आज 27 दिसंबर को पूरा देश झारखंड की मिट्टी के महान सपूत और 'परमवीर चक्र' से सम्मानित लांस नायक अल्बर्ट एक्का की जयंती मना रहा है। 1971 के भारत-पाक युद्ध के वह नायक, जिन्होंने पूर्वी मोर्चे पर पाकिस्तानी सेना के अहंकार को अपने साहस से कुचल दिया था। गुमला के एक साधारण आदिवासी परिवार से निकलकर दिल्ली के 'परमवीर' सम्मान तक पहुँचने का उनका सफर आज के युवाओं के लिए राष्ट्रभक्ति का सबसे बड़ा पाठ है।
जरीडीह का साधारण बालक, सेना का असाधारण योद्धा
अल्बर्ट एक्का का जन्म 27 दिसंबर 1942 को गुमला जिले के ग्राम जरीडीह में हुआ था। प्रकृति की गोद में पले-बढ़े अल्बर्ट ने बचपन से ही जंगल और पहाड़ों के बीच अनुशासन और मेहनत सीखी थी।
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14 गार्ड्स रेजिमेंट का गौरव: देशसेवा का जुनून उन्हें भारतीय सेना में ले आया। सेना के कठिन प्रशिक्षण ने उनकी मानसिक और शारीरिक शक्ति को और भी निखारा, जिसके चलते वे 14 गार्ड्स रेजिमेंट का एक अटूट हिस्सा बने।
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अटूट संकल्प: अल्बर्ट के साथी उन्हें एक ऐसे सैनिक के रूप में जानते थे जो संकट के समय सबसे पहले आगे खड़ा होता था।
1971 का युद्ध: जब पाकिस्तान के बंकर बने चिता
1971 का वह निर्णायक साल, जब बांग्लादेश के उदय की पटकथा लिखी जा रही थी। पूर्वी मोर्चे पर गंगासागर क्षेत्र में पाकिस्तान ने अपनी रक्षा पंक्ति को बेहद मजबूत कर रखा था।
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अभेद्य किलेबंदी: पाक सेना ने बारूदी सुरंगों और आधुनिक मशीनगनों के साथ कंक्रीट के मजबूत बंकर बना रखे थे, जो भारतीय सेना की बढ़त को रोक रहे थे।
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अल्बर्ट का प्रहार: 3 दिसंबर 1971 को जब हमला शुरू हुआ, तब भारी गोलाबारी के बीच अल्बर्ट एक्का ने स्वेच्छा से आगे बढ़कर दुश्मन के बंकरों पर धावा बोल दिया।
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अंतिम सांस तक संघर्ष: उन्होंने एक-एक कर पाकिस्तान के कई बंकरों को नष्ट कर दिया। इस दौरान वे लहूलुहान थे, गोलियां उनके शरीर को छलनी कर चुकी थीं, लेकिन उनका लक्ष्य केवल दुश्मन का अंतिम बंकर था। उन्होंने गंभीर चोटों के बावजूद उस बंकर को भी ध्वस्त किया और जीत का मार्ग प्रशस्त करते हुए वीरगति प्राप्त की।
परमवीर अल्बर्ट एक्का: जीवन और सम्मान (Legacy Snapshot)
| विवरण | जानकारी |
| जन्म | 27 दिसंबर 1942 (गुमला, झारखंड) |
| रेजिमेंट | 14 गार्ड्स (भारतीय सेना) |
| युद्ध | 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध |
| सर्वोच्च सम्मान | परमवीर चक्र (मरणोपरांत) |
| शहादत स्थल | गंगासागर (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) |
इतिहास के पन्नों में अमर: परमवीर चक्र
उनकी इसी अद्वितीय वीरता और सर्वोच्च बलिदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत 'परमवीर चक्र' से नवाजा। यह सम्मान इस बात की गवाही देता है कि वीरता किसी पद या संसाधन की मोहताज नहीं होती। अल्बर्ट एक्का ने साबित किया कि एक लांस नायक भी पूरे युद्ध की दिशा बदल सकता है।
झारखंड का गौरव: हर चौक पर गूँजता नाम
आज झारखंड के गुमला से लेकर जमशेदपुर तक अल्बर्ट एक्का की स्मृतियाँ हर नागरिक के दिल में बसी हैं।
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प्रेरणा पुंज: अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद के संस्थापक वरुण कुमार ने उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि अल्बर्ट एक्का का जीवन युवाओं के लिए साहस और त्याग का जीवंत उदाहरण है।
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स्मारक और सम्मान: उनके नाम पर बने विद्यालय और चौक हमें हर दिन याद दिलाते हैं कि हमारी स्वतंत्रता इन वीरों के रक्त से सुरक्षित है।
राष्ट्र का ऋण और हमारी जिम्मेदारी
अल्बर्ट एक्का जैसे महानायक केवल जयंती पर याद किए जाने के पात्र नहीं हैं, बल्कि उनके आदर्शों को जीवन में उतारना ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी। सीमित साधनों में बड़ा लक्ष्य कैसे प्राप्त किया जाता है, यह अल्बर्ट एक्का के जीवन से बेहतर कोई नहीं सिखा सकता। आज जब हम अपनी सीमाओं पर चैन की नींद सोते हैं, तो उसके पीछे अल्बर्ट एक्का जैसे हजारों वीरों का बलिदान छिपा होता है।
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