कर्नाटक हाईकोर्ट ने CM सिद्दारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति को दी मंजूरी, MUDA घोटाले में गवर्नर का फैसला बरकरार
कर्नाटक हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री सिद्दारमैया के खिलाफ MUDA घोटाले में गवर्नर द्वारा दी गई मुकदमे की अनुमति को सही ठहराया। गवर्नर ने बिना कैबिनेट की सलाह के स्वतंत्र रूप से यह फैसला लिया।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को मुख्यमंत्री सिद्दारमैया के खिलाफ MUDA (मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी) घोटाले में मुकदमा चलाने की अनुमति को बरकरार रखा। यह अनुमति कर्नाटक के गवर्नर थावरचंद गहलोत ने दी थी, जिसे सिद्दारमैया ने चुनौती दी थी। हाईकोर्ट के न्यायाधीश एम नागप्रसन्ना ने मुख्यमंत्री सिद्दारमैया द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने गवर्नर की ओर से दी गई अनुमति को चुनौती दी थी।
यह मामला उस समय चर्चा में आया जब आरोप लगे कि सिद्दारमैया की पत्नी पार्वती को MUDA द्वारा अवैध रूप से अधिक मुआवजा दिया गया था। कहा गया कि यह मुआवजा जमीन के बदले में दिया गया था जिसे MUDA द्वारा विकसित किया गया था। इस मुआवजे में पार्वती को 50:50 योजना के तहत अत्यधिक मूल्यवान प्लॉट्स दिए गए थे, जो उनके भाई मल्लिकार्जुन स्वामी द्वारा उन्हें गिफ्ट की गई जमीन के लिए थे। आरोप है कि यह पूरी प्रक्रिया सिद्दारमैया के प्रभाव में की गई थी।
मामला तब सामने आया जब तीन सामाजिक कार्यकर्ताओं, टीजे अब्राहम, स्नेहमई कृष्णा और प्रदीप कुमार एसपी ने गवर्नर से शिकायत की थी। उनकी शिकायत के आधार पर गवर्नर गहलोत ने 26 जुलाई को मुख्यमंत्री सिद्दारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दी थी। सिद्दारमैया ने इस अनुमति को चुनौती देते हुए इसे बदनीयती से प्रेरित बताया था और कहा था कि यह निर्णय बिना किसी उचित जांच के लिया गया है। उन्होंने यह भी कहा था कि MUDA के फैसले में उनकी कोई भूमिका नहीं थी और यह सब स्वतंत्र रूप से लिया गया था।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह मामला असाधारण परिस्थितियों का है, जहां गवर्नर को कैबिनेट की सलाह के बिना स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार था। न्यायाधीश ने कहा कि सामान्य परिस्थितियों में गवर्नर को मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करना चाहिए, लेकिन असाधारण मामलों में गवर्नर स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ताओं ने गवर्नर से अनुमति मांगने में पूरी तरह से सही कदम उठाया और पुलिस अधिकारी की बजाय निजी शिकायतकर्ता भी ऐसी अनुमति मांग सकते हैं।
अदालत ने यह भी कहा कि गवर्नर का आदेश कोई जल्दबाजी में लिया गया निर्णय नहीं था, बल्कि इसमें पर्याप्त विचार किया गया था। न्यायाधीश ने कहा, "गवर्नर के आदेश में किसी भी प्रकार की अनुचितता नहीं है। यह आदेश पूरी तरह से सोच-समझकर लिया गया निर्णय है और इसमें किसी प्रकार की कानूनी त्रुटि नहीं है।"
सिद्दारमैया के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, ने तर्क दिया था कि गवर्नर ने बिना उचित विचार किए यह निर्णय लिया था और इसमें असामान्य जल्दबाजी दिखाई गई थी। उन्होंने यह भी कहा कि गवर्नर ने इस मामले में निर्णय लेते हुए तीन साल का समय लिया, जबकि पूर्व भाजपा मंत्री शशिकला जोले के खिलाफ जांच के लिए अनुमति देने में उन्होंने इतना समय नहीं लिया।
हालांकि, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, जो गवर्नर के पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ने तर्क दिया कि गवर्नर ने इस मामले में स्वतंत्र निर्णय लिया था और मंत्रिपरिषद की सलाह को नजरअंदाज करते हुए शिकायतकर्ताओं की शिकायतों पर विचार किया था। उन्होंने यह भी कहा कि गवर्नर ने यह सुनिश्चित किया कि इस मामले में जांच की जरूरत है, और इसीलिए उन्होंने मुकदमा चलाने की अनुमति दी।
अंततः, कोर्ट ने सिद्दारमैया की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि मामले के तथ्यों के आधार पर जांच आवश्यक है और गवर्नर की अनुमति कानूनी रूप से सही है। कोर्ट ने यह भी कहा कि सिद्दारमैया की पत्नी पार्वती को जमीन के बदले में अत्यधिक मुआवजा दिया गया था, जो जांच का विषय है।
सिद्दारमैया के वकील ने कोर्ट से इस आदेश पर दो हफ्ते की रोक लगाने की मांग की ताकि वे उच्च अदालत में अपील दायर कर सकें, लेकिन कोर्ट ने इस अनुरोध को खारिज कर दिया और कहा, "मैं अपने ही आदेश पर रोक नहीं लगा सकता।"
इस फैसले के बाद, सिद्दारमैया के खिलाफ MUDA घोटाले में जांच शुरू हो सकेगी, और इस मामले की पूरी कानूनी प्रक्रिया अब आगे बढ़ेगी।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री सिद्दारमैया के खिलाफ MUDA घोटाले में गवर्नर द्वारा दी गई मुकदमा चलाने की अनुमति को सही ठहराया।
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