Jamshedpur Water crisis: टाटा के साये में प्यासे लोग, क्या यही है आर्थिक राजधानी की असलियत?

झारखंड की औद्योगिक राजधानी जमशेदपुर के गैर कंपनी इलाकों में पानी की भारी किल्लत, लोग टैंकर के पीछे भागने को मजबूर, सरकार की जल योजनाएं बनी मज़ाक।

Apr 23, 2025 - 16:11
Apr 23, 2025 - 16:13
 0
Jamshedpur Water crisis: टाटा के साये में प्यासे लोग, क्या यही है आर्थिक राजधानी की असलियत?
Jamshedpur Water crisis: टाटा के साये में प्यासे लोग, क्या यही है आर्थिक राजधानी की असलियत?

झारखंड की पहचान अगर किसी शहर से सबसे पहले जुड़ती है, तो वह है जमशेदपुर—जिसे लोग गर्व से राज्य की आर्थिक राजधानी कहते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस आर्थिक राजधानी के गैर-कंपनी इलाकों में रहने वाले लोग आज भी बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं?

टाटा स्टील के साये में बागबेड़ा और मानगो की प्यास

लौहनगरी के नाम से मशहूर जमशेदपुर में टाटा स्टील जैसी दिग्गज कंपनी का मुख्यालय है, जो देश ही नहीं, दुनिया में अपनी पहचान बना चुकी है। लेकिन इसी कंपनी के कमांड एरिया से सटे इलाके—जैसे बागबेड़ा, किताडीह, हरहरगुट्टू और मानगो—जल संकट की आग में जल रहे हैं।

टाटा कमांड एरिया के अंदर के लोग 24 घंटे साफ पानी की सुविधा का लाभ उठाते हैं, वहीं उनके ठीक बगल में रहने वाले लोग टैंकर के पीछे बाल्टी लेकर भागने को मजबूर हैं। यह फर्क आखिर किसकी ज़िम्मेदारी है?

सरकारी योजनाएं सिर्फ कागज पर

सरकार ने समय-समय पर इन इलाकों में जलापूर्ति की कई योजनाओं की घोषणा की, मगर ज्यादातर योजनाएं शुरू होने से पहले ही दम तोड़ गईं। जिन पाइपलाइनों का उद्घाटन हुआ, वे कभी पानी पहुंचा नहीं सकीं।

जल जीवन मिशन जैसे बड़े-बड़े कार्यक्रमों की घोषणा तो होती है, लेकिन जब बात जमशेदपुर के इन मोहल्लों की आती है, तो सारी योजनाएं ‘अघोषित फेलियर’ साबित होती हैं।

पानी के लिए रोज़मर्रा की जद्दोजहद

इन इलाकों में सुबह की शुरुआत पानी की जंग से होती है और रात तक यही संघर्ष चलता है। चाहे वह गृहणियां हों, नौकरीपेशा युवा या स्कूल-कॉलेज की छात्राएं—हर कोई अपनी पढ़ाई, नौकरी और घर के काम छोड़कर एक बाल्टी पानी की तलाश में भटकता है।

भूगर्भीय जलस्तर इतनी तेजी से नीचे गिर चुका है कि अब बोरिंग करना आम आदमी के बस की बात नहीं रही। टैंकर से आने वाला पानी ही एकमात्र सहारा बन चुका है, मगर वह भी एक ‘जल युद्ध’ का कारण बन गया है—जहां पानी आते ही लोगों की भीड़ टूट पड़ती है।

टाटा स्टील भी सरकार से खरीदती है पानी

हैरान करने वाली बात यह है कि टाटा स्टील खुद सरकार से पानी खरीदती है, और फिर उसे अपने कमांड एरिया में सप्लाई करके करोड़ों की कमाई कर रही है। सवाल यह है कि जब सरकार इस कंपनी को पानी मुहैया करा सकती है, तो फिर बगल के गरीब इलाकों को क्यों नहीं?

क्या इन इलाकों के लोग टाटा के कर्मचारियों से कम नागरिक हैं? क्या सरकार को यह भेदभाव नहीं दिखता?

इतिहास गवाह है: जमशेदपुर का सपना अधूरा

1907 में जब जेएन टाटा ने जमशेदपुर की नींव रखी थी, तब यह शहर ‘पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप’ का आदर्श मॉडल माना गया था। लेकिन आज, 110 साल बाद, वही शहर दो हिस्सों में बंट चुका है—एक चमकदार टाटा जोन और दूसरा प्यासा आम आदमी क्षेत्र।

क्या सरकार जागेगी?

जल संकट कोई नई बात नहीं है, मगर जिस शहर की पहचान ही उद्योग, तकनीक और आधुनिक जीवनशैली हो, वहां यह समस्या शर्मनाक बन जाती है। अगर अब भी सरकार और नगर निगम नहीं जागे, तो जल्द ही जमशेदपुर की यह “आर्थिक राजधानी” की उपाधि खोखली साबित होगी।

विकास की चमक के पीछे छिपी प्यास

जमशेदपुर के चमकते नाम और अंतरराष्ट्रीय छवि के पीछे एक सच्चाई ऐसी भी है, जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। बागबेड़ा से मानगो तक, किताडीह से हरहरगुट्टू तक—हर मोहल्ले में पानी के लिए मारा-मारी इस बात की गवाही देती है कि ‘विकास’ सिर्फ एक तरफा है।

जब तक सरकार इन गैर-कंपनी इलाकों के निवासियों को मूलभूत सुविधाएं नहीं देती, तब तक यह शहर ‘टाटा का शहर’ तो रहेगा, मगर ‘जनता का नहीं’ बन पाएगा।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

Nihal Ravidas निहाल रविदास, जिन्होंने बी.कॉम की पढ़ाई की है, तकनीकी विशेषज्ञता, समसामयिक मुद्दों और रचनात्मक लेखन में माहिर हैं।