ग़ज़ल 2 - नौशाद अहमद सिद्दीकी, भिलाई

Aug 5, 2024 - 13:27
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ग़ज़ल 2 - नौशाद अहमद सिद्दीकी, भिलाई
ग़ज़ल 2 - नौशाद अहमद सिद्दीकी, भिलाई

ग़ज़ल 

अजब सी कैफ़ियत में ज़िन्दगी है,
वो रात-ओ - दिन मेरे पीछे पड़ी है।   

बदल कर रूप वो कुछ ऐसे गुज़री, 
मैं समझा था कि कोई अजनबी है। 

हटा लो ज़ुल्फ़ को चेहरे से अपने,  
यहाँ पहले सी ही इतनी तीरगी है। 

ज़बां खुलती नहीं है उनके आगे,  
हमारी आज तक यह बेबसी है।  

जलाकर रख दिया गुलशन को मेरे, 
तुम्हारी मुझसे इतनी दुश्मनी है। 

हमेशा मुफलिसी घर में जो रहती, 
ये मेरी आज कैसी जिंदगी है। 

घटा नौशाद छाई जेठ में भी,
न जाने किसकी ये जादूगरी है।  

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।