घायल पुलिसकर्मियों की दुर्दशा: इलाज के लिए चंदा जुटाने पर विवश, मेडिकल एलाउंस से नहीं हो रही मदद
सरायकेला में हुए हादसे के बाद घायल पुलिसकर्मी इलाज के लिए चंदा जुटाने पर मजबूर हो गए हैं। झारखंड पुलिसकर्मियों को मिल रहे मात्र 1000 रुपये के मेडिकल एलाउंस से उनकी आवश्यकताएं पूरी नहीं हो रही हैं। सरकार से 3000 रुपये प्रति माह एलाउंस की मांग की जा रही है।
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21 अगस्त की आधी रात को सरायकेला थाना अंतर्गत एक गंभीर हादसा हुआ, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन को उनके आवास छोड़कर लौट रही एस्कॉर्ट गाड़ी मुड़िया मोड़ के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गई। इस दुर्घटना में एक पुलिसकर्मी, विनय कुमार बानसिंह की मौत हो गई, जबकि तीन अन्य पुलिसकर्मी, सिलास विल्सन लकड़ा, दयाल महतो और हवलदार हरिश लागुरी गंभीर रूप से घायल हो गए।
हालांकि, सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि ये घायल पुलिसकर्मी अपना इलाज कराने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि उनके पास पर्याप्त धनराशि नहीं है। ऐसे में जिले के अन्य पुलिसकर्मियों ने अपने घायल साथियों की मदद के लिए 500 से 1000 रुपये का चंदा जुटाना शुरू कर दिया है।
पुलिस सूत्रों के अनुसार, झारखंड के पुलिसकर्मियों को मेडिकल एलाउंस के नाम पर मात्र 1000 रुपये की राशि दी जाती है, जो गंभीर उपचार के लिए बिल्कुल अपर्याप्त है। झारखंड सरकार ने एक पहल के तहत सभी पुलिसकर्मियों का हेल्थ इंश्योरेंस कराने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन बीमा कंपनियों ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, क्योंकि राशि इतनी कम थी कि इसे स्वीकार करना उनके लिए मुनासिब नहीं था।
कुछ पुलिसकर्मियों से बातचीत के दौरान उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मेडिकल सहायता के नाम पर उन्हें कुछ भी नहीं मिल रहा है, जबकि वे 24 घंटे अपनी जान जोखिम में डालकर ड्यूटी पर तैनात रहते हैं। उनकी मांग है कि झारखंड सरकार वर्तमान में दिए जा रहे 1000 रुपये के मेडिकल एलाउंस को बढ़ाकर 3000 रुपये प्रति माह कर दे, ताकि वे खुद का हेल्थ इंश्योरेंस करवा सकें।
मेंस यूनियन के द्वारा भी कई बार सरकार तक इस मुद्दे को पहुंचाया गया है, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। इस कारण आज पुलिसकर्मियों को अपने इलाज के लिए भी सोचना पड़ रहा है, जो कि एक गंभीर चिंता का विषय है।
सरकार द्वारा इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि वे लोग, जो हमारी सुरक्षा के लिए अपने जीवन को जोखिम में डालते हैं, उन्हें उचित स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ मिल सके और उन्हें इलाज के लिए दूसरों पर निर्भर न रहना पड़े।
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