Punjab History: 11 दिसंबर की वह दर्दनाक तारीख, जब सिख साम्राज्य के पतन की शुरुआत हुई
महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद पहला आंग्ल-सिख युद्ध शुरू हुआ। लाल सिंह ने विश्वासघात क्यों किया। 11 दिसंबर 1845 की मूडकी की लड़ाई का इतिहास और सोबरांव की निर्णायक हार की कहानी।
अमृतसर, 11 दिसंबर 2025 – आज से ठीक 180 साल पहले, 11 दिसंबर 1845 को, पंजाब के इतिहास में एक ऐसी तारीख दर्ज हुई जिसने सिख साम्राज्य के पतन की नींव रखी। यह वह दिन था जब सिख साम्राज्य और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच पहला आंग्ल-सिख युद्ध शुरू हुआ। यह केवल एक संघर्ष नहीं था, बल्कि यह स्वतंत्रता और आंतरिक विश्वासघात के कारण एक महान राज्य के खंडित होने की दुखद गाथा थी।
महाराजा की मृत्यु के बाद साम्राज्य में कलह
महाराजा रणजीत सिंह ने अपने नेतृत्व में पंजाब को एक अत्यंत शक्तिशाली और समृद्ध राज्य बनाया था। उन्हें ‘शेर-ए-पंजाब’ भी कहा जाता था। 1839 में उनकी मृत्यु के बाद, साम्राज्य कमजोर पड़ने लगा। उत्तराधिकार की लड़ाई, अंदरूनी राजनीति और राजदरबार में गुटबाजी ने राज्य की कमर तोड़ दी। इसका फायदा उठाते हुए ब्रिटिश कंपनी ने अपने विस्तारवादी मनसूबों के तहत पंजाब पर कब्जा करने की योजना बनाई।
-
सीमा का उल्लंघन: ब्रिटिश और सिख साम्राज्य के बीच एक संधि थी जिसके अनुसार सतलज नदी को दोनों के बीच सीमा माना गया था। लेकिन महाराजा की मृत्यु के बाद, ब्रिटिशों ने सिखों के प्रशासन की कमजोरी का फायदा उठाया और सतलज के पार अपनी सेना तैनात कर दी, जिसे सिखों ने सीधा आक्रमण मानकर चुनौती दी।
विश्वासघात की कहानी और हार
सिख साम्राज्य की सेना, जिसे “खालसा सेना” कहा जाता था, ने इस कदम को चुनौती देने का निर्णय लिया। यह निर्णय महारानी जिंद कौर और सेना के प्रमुख राजा लाल सिंह के नेतृत्व में लिया गया था। लाल सिंह सिख साम्राज्य के वज़ीर और कमांडर थे, जिनका नाम इतिहास में विश्वासघात के साथ जुड़ गया।
-
11 दिसंबर 1845 को मूडकी के पास पहली लड़ाई हुई। सिख सेना ने बहादुरी दिखाई, लेकिन बेहतर हथियारों और रणनीतियों से लैस ब्रिटिशों पर वे भारी नहीं पड़ सके। इस हार के बाद फिरोज़शाह, बद्दोवाल और अलीवाल जैसी अन्य लड़ाइयाँ भी हुईं।
सोबरांव की निर्णायक लड़ाई और अंत
10 फरवरी 1846 को सोबरांव के मैदान में इस युद्ध की निर्णायक लड़ाई हुई। यह बेहद रक्तरंजित रही थी। माना जाता है कि राजा लाल सिंह ने इस युद्ध के दौरान अंग्रेज़ों के साथ विश्वासघात किया, जिसके चलते सिख सेना बुरी तरह पराजित हुई। इस हार ने सिख साम्राज्य की कमर तोड़ दी और ब्रिटिशों ने लाहौर पर कब्जा कर लिया।
-
लाहौर की संधि: 1846 में “लाहौर की संधि” के तहत सिख साम्राज्य का बड़ा हिस्सा ब्रिटिश नियंत्रण में चला गया। लाल सिंह को शुरुआत में अंग्रेज़ों द्वारा पुरस्कृत किया गया, लेकिन बाद में उन्हें देशद्रोह के लिए आगरा भेज दिया गया। अंततः 1849 में दूसरे आंग्ल-सिख युद्ध के बाद पंजाब ने अपनी स्वतंत्रता पूरी तरह खो दी और ब्रिटिश भारत का हिस्सा बन गया। इस प्रकार 11 दिसंबर की तारीख पंजाब के इतिहास में एक ऐतिहासिक परिवर्तन की शुरुआत बनकर रह गई।
What's Your Reaction?


