Jamshedpur Tribute: भारत में कौशल के जनक को NTTF ने दी भावभीनी श्रद्धांजलि, जानें उनकी प्रेरणादायक विरासत
भारत में कौशल विकास के जनक डॉ. एन रघुराज नामासिवयम की प्रथम पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि। जानिए उनकी प्रेरणादायक यात्रा, योगदान और विरासत के बारे में।

भारत में कौशल विकास की आधारशिला रखने वाले डॉ. एन रघुराज नामासिवयम की प्रथम पुण्यतिथि पर देशभर में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। एनटीटीएफ (नेटुरे टेक्निकल ट्रेनिंग फाउंडेशन) के एग्जीक्यूटिव वाइस चेयरमैन सहित संस्थान के सभी प्रशिक्षकों ने उन्हें याद करते हुए उनके योगदान को सराहा। उनकी प्रेरणादायक यात्रा और विरासत ने भारत के युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने में अहम भूमिका निभाई है।
डॉ. एन रघुराज नामासिवयम: भारत में कौशल विकास की नींव रखने वाले व्यक्तित्व
डॉ. एन रघुराज नामासिवयम को भारत में "कौशल विकास का जनक" कहा जाता है। उनका सपना था कि हर युवा तकनीकी रूप से इतना सक्षम बने कि वह अपनी जीविका स्वयं चला सके। उनके इस दृष्टिकोण ने हजारों युवाओं को आत्मनिर्भर बनाया।
एनटीटीएफ गोलमुरी में श्रद्धांजलि सभा
झारखंड के एनटीटीएफ गोलमुरी परिसर में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया, जहां प्रशिक्षकों, छात्रों और संस्थान से जुड़े सदस्यों ने उनके सम्मान में मौन रखा। प्राचार्य प्रीता जॉन और उप प्राचार्य रमेश राय ने उनके योगदान को याद करते हुए कहा कि उनका निधन एक अपूर्व क्षति है, जिसे भरना मुश्किल है।
डॉ. एन रघुराज नामासिवयम की विरासत
डॉ. एन रघुराज नामासिवयम ने भारत में टेक्निकल एजुकेशन और स्किल डेवलपमेंट को एक नई ऊंचाई तक पहुंचाया। उनके नेतृत्व में एनटीटीएफ ने लाखों छात्रों को प्रशिक्षित किया और उन्हें रोजगार के लिए तैयार किया। उनकी शिक्षण शैली और उनकी सोच, युवाओं को न केवल रोजगार दिलाने, बल्कि उन्हें उद्यमी बनाने पर केंद्रित थी।
भारत में कौशल विकास की शुरुआत
भारत में तकनीकी शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण की शुरुआत 1959 में एनटीटीएफ की स्थापना से हुई। इसका उद्देश्य देश के युवाओं को उन्नत तकनीकी शिक्षा देना और उन्हें इंडस्ट्री के अनुकूल बनाना था। डॉ. नामासिवयम का योगदान इस क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुआ।
युवाओं के लिए सीखने योग्य बातें
डॉ. नामासिवयम की जीवन यात्रा से युवा कई महत्वपूर्ण बातें सीख सकते हैं:
कभी सीखना न छोड़ें: वे हमेशा नई तकनीकों और स्किल्स को सीखने पर जोर देते थे।
स्वावलंबी बनें: उनका मानना था कि आत्मनिर्भरता ही असली सफलता है।
मेहनत और समर्पण: उन्होंने दिखाया कि यदि सही दिशा में मेहनत की जाए, तो असंभव कुछ भी नहीं।
उनका जाना, एक अपूरणीय क्षति
एनटीटीएफ के सभी शिक्षकों और प्रशिक्षकों ने कहा कि उनका यूं चले जाना पूरे संस्थान के लिए एक गहरी क्षति है। वे न केवल एक शिक्षक थे, बल्कि एक मार्गदर्शक भी थे, जिन्होंने हजारों युवाओं को तकनीकी क्षेत्र में करियर बनाने की राह दिखाई।
डॉ. नामासिवयम का सपना और भविष्य की योजनाएं
उनकी मृत्यु के बाद भी, उनकी सोच और उनका मिशन जीवित है। एनटीटीएफ और अन्य संस्थान उनके विजन को आगे बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। आने वाले वर्षों में, भारत के कौशल विकास को और अधिक गति देने के लिए नई योजनाएं बनाई जा रही हैं।
डॉ. एन रघुराज नामासिवयम का जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्ची शिक्षा वही है, जो आत्मनिर्भर बनाए। उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनकी पुण्यतिथि पर, देश उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करता है और उनकी विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लेता है।
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