झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन ने घुसपैठियों के खिलाफ संथाल परगना से छेड़ी जंग, आदिवासियों को जमीन वापस दिलाने का वादा

पाकुड़ में आयोजित मांझी परगना महासम्मेलन में पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन ने बांग्लादेशी घुसपैठियों को संथाल परगना से बाहर निकालने और आदिवासियों को उनकी छीनी गई जमीन वापस दिलाने का संकल्प लिया। जानें चम्पाई सोरेन के प्रभावी भाषण की पूरी कहानी।

Oct 3, 2024 - 20:58
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झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन ने घुसपैठियों के खिलाफ संथाल परगना से छेड़ी जंग, आदिवासियों को जमीन वापस दिलाने का वादा
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन ने घुसपैठियों के खिलाफ संथाल परगना से छेड़ी जंग, आदिवासियों को जमीन वापस दिलाने का वादा

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन ने पाकुड़ में आयोजित मांझी परगना महासम्मेलन में हजारों आदिवासियों को संबोधित करते हुए संथाल परगना से बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर निकालने और आदिवासियों को उनकी छीनी गई जमीन वापस दिलाने का संकल्प लिया। उन्होंने इस महासम्मेलन में आदिवासी समाज की एकजुटता और उनकी भूमि पर कब्जे की स्थिति को लेकर कड़ा संदेश दिया।

"आदिवासियों को छीनी जमीन पर वापस कब्जा दिलवाएंगे" - चम्पाई सोरेन का मजबूत संदेश

गोकुलपुर हाट मैदान में आयोजित इस महासम्मेलन में चम्पाई सोरेन ने अपने भाषण में आदिवासी समाज के संघर्ष और उसके अस्तित्व की रक्षा का संकल्प लिया। उन्होंने जोर देकर कहा कि आदिवासी समाज दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता का हिस्सा है और उसने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा, लेकिन जब बात अस्तित्व की आती है, तो आदिवासी समाज किसी भी हद तक जाने को तैयार है। चम्पाई सोरेन ने यह भी कहा कि "हम संथाल परगना की धरती से बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर निकालेंगे और आदिवासियों को उनकी जमीन वापस दिलवाएंगे।"

संथाल परगना के गौरवशाली इतिहास को याद किया

चम्पाई सोरेन ने अपने संबोधन में संथाल परगना के इतिहास का उल्लेख करते हुए कहा कि इसी धरती पर बाबा तिलका मांझी, वीर सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और वीरांगना फूलो-झानो जैसे क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था, जिसका परिणाम संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम के रूप में सामने आया। यह अधिनियम आदिवासियों को उनकी जमीन पर अधिकार दिलाने के लिए था, लेकिन आज स्थिति बदल गई है और बाहरी घुसपैठिए आदिवासियों की जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ पहला विद्रोह भी इसी संथाल परगना की धरती से हुआ था, और अब आदिवासी समाज को अपनी जमीन पर फिर से अधिकार दिलाने के लिए एक नई लड़ाई की जरूरत है।

मांझी परगना व्यवस्था को सुदृढ़ करने की पहल

चम्पाई सोरेन ने अपने भाषण में कहा कि "हम आदिवासियों को सरल और शांतिप्रिय माना जाता है, लेकिन जब बात अस्तित्व की होती है, तो हमारा समाज किसी भी हद तक जाने को तैयार रहता है।" उन्होंने कहा कि बाहरी घुसपैठियों के कारण आज कई गांवों में आदिवासियों का नामोनिशान मिट चुका है, और हमारी बहु-बेटियों की सुरक्षा भी खतरे में है। इसी स्थिति को बदलने के लिए हम अपने पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था 'मांझी परगना' की मदद से बैसी (पारंपरिक ग्रामसभा) बुलाकर उन जमीनों को वापस दिलवाएंगे, जिन पर इन घुसपैठियों का कब्जा है।

चम्पाई सोरेन ने यह भी स्पष्ट किया कि संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम होने के बावजूद आदिवासी गांव उजड़ गए, क्योंकि हमारी मांझी परगना व्यवस्था को कमजोर कर दिया गया था। अब वक्त आ गया है कि इस पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था को पुनः मजबूत बनाया जाए और आदिवासियों के हितों की रक्षा की जाए।

घुसपैठियों के खिलाफ आदिवासी समाज को एकजुट करने का आह्वान

महासम्मेलन में चम्पाई सोरेन ने कई गांवों का उदाहरण देते हुए बताया कि आज बांग्लादेशी घुसपैठिए हमारी जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं, हमारे गांवों को उजाड़ रहे हैं और हमारे समाज की संस्कृति और अस्तित्व को खतरे में डाल रहे हैं। उन्होंने सभी उपस्थित आदिवासियों को एकजुट होने का आह्वान किया और कहा कि "हमारी लड़ाई अपने अस्तित्व और हमारी जमीन की रक्षा की है, और इसे हम हर हाल में लड़ेंगे।"

उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासी समाज के पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था की मदद से सभी ग्रामीण बैसी बुलाकर अपने अधिकार वापस लेंगे और घुसपैठियों को उनके अतिक्रमण से बाहर निकाल फेंकेंगे। इस मौके पर उपस्थित हजारों लोगों ने चम्पाई सोरेन के भाषण का जोरदार समर्थन किया और उनके द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन में पूर्ण समर्थन की घोषणा की।

पूर्व विधायकों और ग्राम प्रधानों का समर्थन

इस महासम्मेलन में पूर्व विधायक लोबिन हेंब्रम सहित कई ग्राम प्रधानों ने भी आदिवासी समाज की एकजुटता और जमीन वापसी के संघर्ष के प्रति समर्थन जताया। चम्पाई सोरेन ने सिदो-कान्हू और चांद-भैरव की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की और आदिवासी क्रांतिकारियों के योगदान को याद किया।

महासम्मेलन में आदिवासी समाज की उपस्थिति से यह साफ हो गया कि वे अपने अधिकारों और जमीन की रक्षा के लिए अब किसी भी प्रकार के संघर्ष के लिए तैयार हैं। आदिवासी समाज ने इस महासम्मेलन के माध्यम से यह संदेश दिया कि वे अपनी जमीन पर बाहरी घुसपैठियों का कब्जा सहन नहीं करेंगे और अपनी पारंपरिक मांझी परगना व्यवस्था को सुदृढ़ करेंगे।

संथाल परगना के भविष्य के लिए मजबूत कदम

महासम्मेलन में शामिल हजारों लोगों ने चम्पाई सोरेन के संघर्ष का समर्थन किया और अपने अधिकारों के लिए लड़ने का संकल्प लिया। यह महासम्मेलन न केवल आदिवासी समाज के अस्तित्व की रक्षा के लिए था, बल्कि यह उनके आत्मसम्मान और संस्कृति की रक्षा का भी प्रतीक था। चम्पाई सोरेन ने स्पष्ट किया कि यह लड़ाई उनके पुरखों की जमीन और उनके अस्तित्व की है और वे इसे किसी भी हाल में जीतेंगे।

संथाल परगना के आदिवासी समाज ने यह संदेश दिया कि वे एकजुट हैं और अपनी जमीन, अपनी संस्कृति और अपने अधिकारों के लिए हमेशा संघर्ष करते रहेंगे। चम्पाई सोरेन के इस घोषणात्मक भाषण ने आदिवासी समाज में एक नई उम्मीद और ऊर्जा भर दी है, जिससे आने वाले दिनों में संथाल परगना के इस संघर्ष को और भी मजबूत किया जाएगा।

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।