Chaibasa Horror: थैले में बच्चे का शव, चाईबासा सदर अस्पताल की शर्मनाक तस्वीर, बस से अंतिम सफर
पश्चिमी सिंहभूम के चाईबासा सदर अस्पताल में मानवता शर्मसार हो गई है जहाँ एम्बुलेंस न मिलने पर एक लाचार पिता अपने 4 साल के मासूम का शव थैले में भरकर बस से गांव ले जाने को मजबूर हुआ। सरकारी दावों और 108 सेवा की पोल खोलती इस दर्दनाक सच्चाई और सिस्टम की बेरुखी की पूरी हकीकत यहाँ दी गई है।
चाईबासा (पश्चिमी सिंहभूम), 20 दिसंबर 2025 – झारखंड के चाईबासा से एक ऐसी विचलित कर देने वाली तस्वीर सामने आई है जिसे देखकर किसी भी संवेदनशील इंसान की रूह कांप जाए। एक पिता, जिसकी गोद उजाड़ चुकी थी, उसे अपने 4 साल के मासूम बच्चे के शव को सम्मान के साथ घर ले जाने के लिए एक सरकारी एम्बुलेंस तक नसीब नहीं हुई। गरीबी और सिस्टम की मार ने इस कदर मजबूर किया कि पिता को अपने कलेजे के टुकड़े के शव को एक 'थैले' में छिपाकर आम बस से सफर करना पड़ा। यह घटना केवल एक पिता की बेबसी नहीं, बल्कि हमारी पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था की नैतिक मौत का प्रमाण है।
इतिहास: चाईबासा और स्वास्थ्य सुविधाओं का संघर्ष
पश्चिमी सिंहभूम जिला अपनी जनजातीय विरासत और घने जंगलों के लिए जाना जाता है। ऐतिहासिक रूप से यहाँ की स्वास्थ्य सेवाएं हमेशा से चुनौतियों भरी रही हैं। चाईबासा सदर अस्पताल इस पूरे क्षेत्र का सबसे बड़ा सरकारी चिकित्सा केंद्र है, जहाँ कोल्हान के दूर-दराज के इलाकों से गरीब ग्रामीण इस उम्मीद में आते हैं कि उन्हें बेहतर इलाज और सरकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा। हालांकि, पिछले कुछ सालों में झारखंड में 108 एम्बुलेंस सेवा और मुख्यमंत्री स्वास्थ्य सहायता योजना जैसे बड़े-बड़े वादे किए गए, लेकिन चाईबासा की इस घटना ने इतिहास के पन्नों पर फिर से वही काला धब्बा लगा दिया है जो अक्सर संसाधनों के अभाव और प्रशासनिक संवेदनहीनता के कारण लगता रहा है।
सदर अस्पताल की बेरुखी: घंटों गुहार पर भी नहीं पिघला दिल
बालजोड़ी गांव (नोवामुंडी) निवासी डिम्बा चतोम्बा अपने 4 वर्षीय बेटे की अचानक तबीयत बिगड़ने पर उसे लेकर सदर अस्पताल चाईबासा पहुँचे थे। परिजनों को उम्मीद थी कि सरकारी अस्पताल उनके बच्चे को नई जिंदगी देगा, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। इलाज के दौरान मासूम ने दम तोड़ दिया।
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अपनों का साथ छूटा, प्रशासन मुकर गया: बच्चे की मौत के बाद डिम्बा चतोम्बा ने अस्पताल प्रबंधन से गुहार लगाई कि उन्हें शव को गांव ले जाने के लिए एक वाहन उपलब्ध कराया जाए।
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घंटों का इंतजार: बताया जा रहा है कि पीड़ित पिता अस्पताल परिसर में यहाँ से वहाँ भटकता रहा, लेकिन किसी भी जिम्मेदार अधिकारी या कर्मचारी ने संवेदनशीलता नहीं दिखाई।
थैले में 'सपना' और बस का सफर
जब घंटों के इंतजार के बाद भी एम्बुलेंस नहीं मिली और निजी वाहन करने के पैसे नहीं थे, तो एक टूटे हुए पिता ने वह कदम उठाया जिसे सुनकर पत्थर दिल भी पिघल जाए। डिम्बा चतोम्बा ने अपने बच्चे के बेजान शरीर को एक थैले में रखा ताकि बस में यात्री उसे देखकर आपत्ति न करें और वह अपने गांव तक पहुँच सके।
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शर्मनाक मजबूरी: एक पिता के लिए इससे बड़ा दुख क्या होगा कि वह अपने बच्चे की अंतिम यात्रा को 'सम्मान' तक नहीं दे सका।
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सार्वजनिक आक्रोश: बस स्टैंड पर मौजूद जिन लोगों ने इस दृश्य को देखा, उनकी आँखें नम हो गईं और लोगों ने स्वास्थ्य विभाग के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर किया।
घटना का घटनाक्रम और वर्तमान स्थिति
| विवरण | जानकारी |
| पीड़ित पिता | डिम्बा चतोम्बा (बालजोड़ी गांव, नोवामुंडी) |
| मृतक | 4 वर्षीय मासूम बच्चा |
| घटना स्थल | सदर अस्पताल, चाईबासा (पश्चिमी सिंहभूम) |
| प्रमुख आरोप | एम्बुलेंस देने से इनकार और प्रशासनिक संवेदनहीनता |
| परिवहन माध्यम | निजी बस (शव थैले में रखकर) |
सिस्टम के दावों की खुली पोल
सरकार गरीबों के लिए 'नि:शुल्क' एम्बुलेंस और सम्मानजनक अंत्येष्टि की बात करती है, लेकिन चाईबासा सदर अस्पताल की यह तस्वीर हकीकत बयां कर रही है। आखिर क्यों 108 एम्बुलेंस सेवा समय पर उपलब्ध नहीं थी? क्या अस्पताल प्रशासन को इस बात की खबर नहीं थी कि एक गरीब पिता अपने बच्चे का शव थैले में लेकर जा रहा है? स्थानीय लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अब इस मामले की उच्चस्तरीय जांच और जिम्मेदार अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
जवाबदेही की मांग
चाईबासा की यह घटना यह याद दिलाती है कि हम डिजिटल इंडिया और आधुनिक चिकित्सा के चाहे जितने दावे कर लें, जब तक एक गरीब को अपने बच्चे के शव के लिए एम्बुलेंस नहीं मिलती, तब तक सब बेमानी है। डिम्बा चतोम्बा का यह दर्द भरा सफर व्यवस्था के गाल पर एक तमाचा है। अब देखना यह है कि प्रशासन इस पर क्या सफाई देता है और दोषियों पर क्या गाज गिरती है।
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