Bombay High Court: दामाद द्वारा सास से दुष्कर्म, शर्मनाक कृत्य पर सजा बरकरार, क्या है न्यायालय का फैसला?

बंबई उच्च न्यायालय ने दामाद द्वारा सास से दुष्कर्म के मामले में सजा बरकरार रखी। न्यायमूर्ति जीए सनप ने इसे शर्मनाक कृत्य बताया, पीड़िता के नारीत्व को कलंकित करने वाले इस कृत्य को लेकर न्यायपालिका का कड़ा संदेश।

Nov 14, 2024 - 10:16
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Bombay High Court: दामाद द्वारा सास से दुष्कर्म, शर्मनाक कृत्य पर सजा बरकरार, क्या है न्यायालय का फैसला?
Bombay High Court: दामाद द्वारा सास से दुष्कर्म, शर्मनाक कृत्य पर सजा बरकरार, क्या है न्यायालय का फैसला?

मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय ने नागपुर पीठ से सास से दुष्कर्म के दोषी दामाद की सजा को बरकरार रखते हुए इस मामले में कड़ा रुख अपनाया है। न्यायमूर्ति जीए सनप की एकल पीठ ने कहा कि यह एक बेहद शर्मनाक कृत्य था और दोषी ने अपनी सास का न केवल विश्वास तोड़ा, बल्कि उसके नारीत्व को भी कलंकित किया। अदालत ने इस कृत्य को स्वीकार करते हुए कहा कि पीड़िता दोषी के लिए मां जैसी थी और उसने कभी भी यह कल्पना नहीं की थी कि उसका दामाद इस तरह की घिनौनी हरकत करेगा।

सजा बरकरार रखने पर अदालत की टिप्पणी

न्यायमूर्ति सनप ने अपने फैसले में कहा, "याचिकाकर्ता (दोषी) ने पीड़िता के नारीत्व को कलंकित किया। यह कृत्य उस समय हुआ जब पीड़िता अपनी मां की उम्र की थी और उसने कभी भी नहीं सोचा था कि उसका दामाद उसे इस तरह अपमानित करेगा।" इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि न्यायालय ने पीड़िता की पीड़ा को समझते हुए उसके साहस को सराहा और दोषी को सजा दी।

क्या था मामला?

यह घटना दिसंबर 2018 की है, जब 55 वर्षीय पीड़िता ने अपने दामाद द्वारा दुष्कर्म किए जाने की शिकायत पुलिस में दर्ज कराई थी। पीड़िता ने अपनी बेटी को इस घटना के बारे में बताया और फिर पुलिस में शिकायत की। सत्र अदालत ने मार्च 2022 में दोषी दामाद को दोषी ठहराते हुए उसे 14 साल की सजा सुनाई थी।

दोषी ने सत्र अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। उसने याचिका में दावा किया था कि यह यौन संबंध सहमति से हुआ था और उसे झूठे आरोपों में फंसाया गया। लेकिन उच्च न्यायालय ने उसकी याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यदि यह सहमति से किया गया कृत्य होता, तो पीड़िता पुलिस को सूचित नहीं करती और न ही इस मामले को अपनी बेटी से साझा करती।

न्यायालय का जवाब: सहमति का सवाल

अदालत ने स्पष्ट किया कि अगर यह कृत्य सहमति से किया गया होता, तो पीड़िता अपने चरित्र को दांव पर नहीं लगाती और इस तरह के आरोप नहीं लगाती। उच्च न्यायालय ने इस बात को भी माना कि पीड़िता का आचरण उसकी स्थिति को देखते हुए बहुत ही साहसिक था। उसने एक शर्मनाक घटना को सार्वजनिक करने का निर्णय लिया, जो बहुत कम महिलाएं ऐसी स्थिति में करती हैं।

न्यायमूर्ति जीए सनप का बयान

न्यायमूर्ति सनप ने कहा, "अगर यह सहमति से हुआ होता, तो पीड़िता पुलिस से संपर्क नहीं करती और न ही अपनी बेटी को बताती। यह घटना न केवल पीड़िता के लिए बल्कि समाज के लिए भी एक बड़ा संदेश है।" अदालत का यह फैसला यह संकेत देता है कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर न्यायपालिका की सहनशीलता कम होती जा रही है और दोषियों को कड़ी सजा दी जा रही है।

दुष्कर्म के मामलों में न्यायपालिका का कड़ा रुख

यह फैसला समाज में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों के खिलाफ अदालतों के कड़े रुख को दर्शाता है। न्यायालय ने यह साबित कर दिया है कि महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की रक्षा के लिए किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

इस मामले में सजा की पुष्टि करने के साथ, अदालत ने यह भी माना कि दामाद द्वारा अपनी सास के साथ किए गए इस अपराध के गंभीर परिणाम होने चाहिए थे। पीड़िता की उम्र और स्थिति को देखते हुए इस कृत्य को पूरी तरह से अस्वीकार्य करार दिया गया है।

समाज और न्यायपालिका के संदेश

यह घटना समाज में एक बड़ा सवाल खड़ा करती है कि कैसे परिवार के अंदर भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। हालांकि, इस फैसले ने एक मजबूत संदेश दिया है कि न्यायपालिका इस तरह के अपराधों को गंभीरता से ले रही है और महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर सख्त रुख अपना रही है।

इस मामले ने यह भी दिखाया कि हमारे समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान और सुरक्षा की आवश्यकता अब पहले से कहीं अधिक हो गई है। ऐसे कृत्य न केवल कानूनी बल्कि सामाजिक और मानसिक तौर पर भी घातक साबित होते हैं, और समाज को इससे निपटने के लिए जिम्मेदारी लेनी होगी।

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