Bihar Land Survey: क्या बिहार में भूमि सर्वे की प्रक्रिया जनता को परेशान कर रही है?
बिहार में भूमि सर्वे जनता के लिए समस्याओं का कारण बन रहा है। वंशावली, कैथी लिपि, और अधूरे कागजों की वजह से लोग परेशान हो रहे हैं। जानें इस सर्वे की प्रमुख चुनौतियां।
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बिहार में भूमि सर्वे की प्रक्रिया से जनता क्यों परेशान हो रही है?
नीतीश सरकार द्वारा 20 अगस्त से शुरू किए गए भूमि सर्वे को ऐतिहासिक फैसले के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य भूमि विवादों को समाप्त करना और लोगों को उनकी जमीन से जुड़े मुद्दों का समाधान प्रदान करना है। लेकिन, जमीनी हकीकत इससे कुछ अलग है। विपक्ष के अनुसार, इस सर्वे के कारण जनता को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, खासकर प्रवासी मजदूरों, वंशावली प्रमाणपत्र और जमीन के अधूरे कागजात को लेकर।
1. प्रवासी मजदूरों की समस्याएं
बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की कमी के कारण बड़ी संख्या में पुरुष दूसरे राज्यों में काम करने के लिए जाते हैं। इस भूमि सर्वे के दौरान, उनकी गैरमौजूदगी में उनकी जमीन के स्वामित्व को लेकर आशंकाएं पैदा हो रही हैं। लोगों को डर है कि कहीं उनकी अनुपस्थिति में उनकी जमीन किसी और के नाम पर दर्ज न कर दी जाए। इसके चलते, प्रवासी मजदूर अपने गांव लौटने के लिए मजबूर हो रहे हैं, जिससे उनकी रोजी-रोटी पर संकट आ रहा है। सरकार का दावा है कि सर्वे की प्रक्रिया ऑनलाइन भी की जा सकती है, लेकिन जमीनी कागजात और वंशावली के प्रमाण के लिए लोगों को भौतिक रूप से उपस्थित होना पड़ रहा है।
2. वंशावली प्रमाणपत्र की समस्याएं
बिहार में अधिकतर जमीनें पैतृक संपत्ति के रूप में मौजूद हैं। इन जमीनों पर मालिकाना हक साबित करने के लिए वंशावली प्रमाणपत्र की आवश्यकता होती है, जो सरपंच द्वारा जारी किया जाता है। लेकिन, कई मामलों में सरपंच और स्थानीय अधिकारी लोगों को इस प्रक्रिया में परेशान कर रहे हैं। रिश्वतखोरी की घटनाएं भी सामने आ रही हैं, जिसके कारण जमीन मालिकों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। वंशावली प्रमाणपत्र प्राप्त करने में हो रही कठिनाइयों के चलते, लोगों को सर्वे के लिए बार-बार प्रयास करने पड़ रहे हैं।
3. कैथी लिपि में जमीन के कागजात
बिहार में 1919 में हुए सर्वे के दौरान जमीन रजिस्ट्रियों के कागजात कैथी लिपि में तैयार किए गए थे। वर्तमान समय में इस लिपि को समझने वाले लोग बहुत कम हैं, जिसके कारण भूमि सर्वे के दौरान लोगों को अपने कागजात को समझने और प्रस्तुत करने में कठिनाई हो रही है। हालांकि, सरकार ने सर्वे में लगे अधिकारियों को कैथी लिपि की ट्रेनिंग देने का फैसला किया है, लेकिन फिलहाल इस समस्या का समाधान बहुत धीमा है।
4. जमीन के अधूरे कागजात
बिहार में लगभग एक तिहाई जमीनें विवादित हैं, जिन पर कानूनी लड़ाई चल रही है या जिनके कागजात अधूरे हैं। ऐसे में, राजस्व अधिकारी बिना संपूर्ण कागजात के सर्वे का काम रोक देते हैं। जमीन के सभी कागजात प्राप्त करने में महीनों का समय लग रहा है, और इसके चलते राजस्व कार्यालयों में लंबी-लंबी कतारें देखने को मिल रही हैं। लोगों को भूमि सर्वे में शामिल होने के लिए अपने कागजात की स्थिति को सुधारने में बड़ी मुश्किलें हो रही हैं।
विपक्ष का आरोप और जनता की समस्याएं
जहां सरकार इस भूमि सर्वे को बिहार के लिए एक ऐतिहासिक कदम बता रही है, वहीं विपक्ष का कहना है कि यह जनता के लिए समस्याओं का अंबार खड़ा कर रहा है। सरकारी प्रक्रिया की जटिलताओं और अफसरशाही के कारण लोग बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं। सर्वे में हो रही रिश्वतखोरी और सरकारी तंत्र की अक्षमता के कारण कई स्थानों पर भूमि सर्वे का विरोध भी देखा जा रहा है। लोगों में इस बात को लेकर असंतोष है कि सर्वे की प्रक्रिया तो आसान दिखाई देती है, लेकिन जमीनी स्तर पर यह बेहद जटिल है।
सरकार का समाधान और आगे की राह
सरकार का कहना है कि सर्वे के दौरान सामने आ रही चुनौतियों को हल करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। अधिकारियों को कैथी लिपि की ट्रेनिंग दी जा रही है और वंशावली प्रमाणपत्र प्राप्त करने की प्रक्रिया को सरल बनाने पर जोर दिया जा रहा है। सरकार ने यह भी कहा है कि जो लोग किसी कारण से सर्वे में भाग नहीं ले पा रहे हैं, वे ऑनलाइन प्रक्रिया के माध्यम से इसमें भाग ले सकते हैं।
आखिरकार, बिहार का भूमि सर्वे एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में आने वाली चुनौतियों को दूर किए बिना इसे सफल नहीं कहा जा सकता।
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