B.Ed Gender Equality: समाज में रूढ़िवादिता को हटाने की अपील, नाटक से जागरूकता का प्रयास
बीएड विभाग के छात्रों ने लैंगिक समानता पर लघु नाटक आयोजित किया। इस कार्यक्रम में समाज में फैली कुरीतियों और रूढ़िवादिता को समाप्त करने का आह्वान किया गया। जानिए इस विशेष कार्यक्रम के बारे में।
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समाज में फैल रही कुरीतियों और रूढ़िवादिता के खिलाफ एक अहम पहल बीएड विभाग में शुरू की गई, जहां छात्राओं ने लैंगिक समानता पर लघु नाटक का आयोजन किया। यह कार्यक्रम न केवल एक कला प्रदर्शन था, बल्कि समाज में फैली असमानताओं और भेदभाव को दूर करने का एक बड़ा संदेश भी था। इस नाटक में दिखाया गया कि समाज में लैंगिक भेदभाव कैसे महिला और पुरुषों की मानसिकता और जीवन पर असर डालता है, और इसे बदलने के लिए किस प्रकार की जागरूकता और शिक्षा की जरूरत है।
डॉ. वीणा सिंह प्रियदर्शी की महत्वपूर्ण बातें
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. वीणा सिंह प्रियदर्शी ने कहा कि समाज में फैल रही कुरीतियों और रूढ़िवादिता को दूर करने के लिए शिक्षा और जागरूकता का अहम योगदान है। उन्होंने कहा, "समाज में बदलाव लाने के लिए हमें सबसे पहले अपने सोचने के तरीके को बदलना होगा। समाज को यह समझाना होगा कि लड़के और लड़कियों में कोई भेद नहीं होता है। दोनों को समान अधिकार मिलना चाहिए।"
उनकी बातों ने न केवल उपस्थित छात्राओं को प्रभावित किया, बल्कि पूरे महाविद्यालय में एक नई सोच का प्रवाह किया। डॉ. प्रियदर्शी का यह संदेश समाज के हर वर्ग के लिए प्रासंगिक है, जहां लड़कियों को हमेशा कमतर समझा जाता है और उन्हें अपनी क्षमता साबित करने का मौका नहीं मिलता।
प्रोफेसर डोरिस दास ने क्या कहा?
प्रोफेसर डोरिस दास ने भी इस अवसर पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा, "समाज में बदलाव लाने के लिए सबसे जरूरी है कि हम शिक्षा पर ध्यान दें। लड़कियों और लड़कों के बीच भेदभाव को खत्म करने के लिए यह जरूरी है कि हम बच्चों को इस तरह की शिक्षा दें कि वे लैंगिक समानता को समझें और सम्मानित करें।" प्रोफेसर डोरिस दास का यह बयान इस बात का संकेत है कि भविष्य में शिक्षा संस्थानों को अपने पाठ्यक्रम में ऐसे मुद्दों को प्रमुखता से शामिल करना होगा, ताकि समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सके।
लैंगिक असमानता का प्रभाव
कार्यक्रम में विभागाध्यक्ष डॉ. विशेश्वर यादव ने भी लैंगिक असमानता के गंभीर परिणामों पर बात की। उन्होंने कहा, "समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण आत्महत्या की घटनाओं में इज़ाफा हुआ है। इसके साथ ही भ्रूण हत्या के कारण लड़कियों की संख्या में भी गिरावट आई है।" उनके बयान ने दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि यह समस्याएं सिर्फ सामाजिक नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और मानवाधिकार से जुड़ी गंभीर चिंताएं भी हैं।
नाटक के माध्यम से जागरूकता फैलाना
इस कार्यक्रम की सबसे खास बात थी बीएड विभाग की छात्राओं द्वारा प्रस्तुत किया गया नाटक। इस नाटक में समाज में लैंगिक भेदभाव और उसके कारण होने वाले दुष्प्रभावों को दर्शाया गया। इस नाटक का नेतृत्व प्रो. दीपिका कुजूर और जया शर्मा ने किया, जिन्होंने इसे बेहद प्रभावशाली और दिलचस्प तरीके से प्रस्तुत किया। नाटक के दौरान दर्शकों को यह महसूस हुआ कि समाज में बदलाव लाने के लिए हमें अपने भीतर की मानसिकता को बदलना होगा।
समाज में बदलाव की जरूरत
इस कार्यक्रम ने समाज में बदलाव की दिशा में एक नई सोच को जन्म दिया। यह नाटक न केवल दर्शकों को एक नई दिशा देने का काम कर रहा है, बल्कि यह एक प्रेरणा भी है कि हम सब को समाज में व्याप्त कुरीतियों और असमानताओं के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।
समाज में लैंगिक समानता को सुनिश्चित करने के लिए शिक्षा और जागरूकता सबसे प्रभावी उपाय हैं। इस प्रकार के कार्यक्रम समाज में जागरूकता फैलाने का बेहतरीन तरीका हैं, जो न केवल छात्राओं, बल्कि पूरे समुदाय को बदलाव के लिए प्रेरित करते हैं। क्या आप भी इस बदलाव का हिस्सा बनना चाहते हैं? आइए, हम सब मिलकर समाज में लैंगिक समानता की ओर एक कदम बढ़ाएं।
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