सावन बरसे धारा - डॉ ऋतु अग्रवाल  ( मेरठ )

सावन बरसे धारा - डॉ ऋतु अग्रवाल  ( मेरठ )

Jul 26, 2024 - 23:19
Jul 26, 2024 - 23:32
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सावन बरसे धारा - डॉ ऋतु अग्रवाल  ( मेरठ )

आधार छन्द-सार 
शीर्षक-सावन बरसे धारा
विधा- गीत

प्रिय पावस आया आज सखी,दृश्य बहुत है प्यारा। 
उमड़-घुमड़ बदरा घिर आए,सावन बरसे धारा।।

चली मिलन को नदी बावरी, सागर व्याकुल होता।
अंबर छाई घटा साँवरी, नेह पुष्प शशि बोता।।
बाहुपाश में सिमट चाँदनी,लीपे नभ चौबारा।
उमड़-घुमड़ बदरा घिर आए, सावन बरसे धारा।।

कली-कली भँवरे मँडरायें, पुष्प गर्व से झूमें।
रंग-बिरंगे स्वर्ण फतंगे,जहाँ-तहाँ वन घूमें।। 
चातक टेरे डाली-डाली, नाचे मोर दुलारा।
उमड़-घुमड़ बदरा घिर आए, सावन बरसे धारा।।

ओस सरीखे मोती चमकें, गोदी में दूर्वा की।
शीतल मंद पवन चलता है, थाम बाँह पूर्वा की।। 
देख प्रकृति की अद्भुत माया , मगन जगत है सारा।
उमड़-घुमड़ बदरा घिर आए,सावन बरसे धारा।।


(फतंगे- तितलियां)


मौलिक सृजन 
डॉ ऋतु अग्रवाल 
मेरठ

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।