सावन बरसे धारा - डॉ ऋतु अग्रवाल ( मेरठ )
सावन बरसे धारा - डॉ ऋतु अग्रवाल ( मेरठ )
आधार छन्द-सार
शीर्षक-सावन बरसे धारा
विधा- गीत
प्रिय पावस आया आज सखी,दृश्य बहुत है प्यारा।
उमड़-घुमड़ बदरा घिर आए,सावन बरसे धारा।।
चली मिलन को नदी बावरी, सागर व्याकुल होता।
अंबर छाई घटा साँवरी, नेह पुष्प शशि बोता।।
बाहुपाश में सिमट चाँदनी,लीपे नभ चौबारा।
उमड़-घुमड़ बदरा घिर आए, सावन बरसे धारा।।
कली-कली भँवरे मँडरायें, पुष्प गर्व से झूमें।
रंग-बिरंगे स्वर्ण फतंगे,जहाँ-तहाँ वन घूमें।।
चातक टेरे डाली-डाली, नाचे मोर दुलारा।
उमड़-घुमड़ बदरा घिर आए, सावन बरसे धारा।।
ओस सरीखे मोती चमकें, गोदी में दूर्वा की।
शीतल मंद पवन चलता है, थाम बाँह पूर्वा की।।
देख प्रकृति की अद्भुत माया , मगन जगत है सारा।
उमड़-घुमड़ बदरा घिर आए,सावन बरसे धारा।।
(फतंगे- तितलियां)
मौलिक सृजन
डॉ ऋतु अग्रवाल
मेरठ
What's Your Reaction?