Mango Protest: श्मशान पर सरकारी दफ्तर! जमीन छिनने के खिलाफ आदिवासियों का बड़ा प्रदर्शन
जमशेदपुर के मानगो में आदिवासियों की श्मशान भूमि पर नगर निगम कार्यालय बनाए जाने का विरोध तेज। हजारों ग्रामीण हरवे-हथियार के साथ सड़कों पर उतरे।

झारखंड में एक बार फिर आदिवासी समुदाय की धार्मिक जमीन पर कब्जे का मामला तूल पकड़ रहा है। जमशेदपुर के मानगो नगर निगम एवं अंचल कार्यालय के लिए प्रस्तावित जमीन को लेकर भारी विरोध शुरू हो गया है। स्थानीय आदिवासियों का आरोप है कि जिस भूमि पर सरकारी भवन बनाने की योजना बनाई जा रही है, वह दरअसल उनकी पारंपरिक श्मशान भूमि है।
इस फैसले के खिलाफ आदिवासी समुदाय उग्र हो चुका है। सोमवार को हजारों की संख्या में ग्रामीण उपायुक्त कार्यालय पहुंचे और हरवे-हथियार के साथ विरोध प्रदर्शन किया।
कैसे शुरू हुआ यह विवाद?
यह मामला मानगो के बालीगुमा मौजा की उस जमीन से जुड़ा है, जिसे नगर निगम कार्यालय के लिए स्थानांतरित किया जा रहा है।
- स्थानीय आदिवासी समुदाय का दावा है कि यह भूमि उनके पूर्वजों की अंतिम क्रिया के लिए आरक्षित है।
- गौड़गोड़ा और बालीगुमा गांवों की ग्राम सभाओं ने इस फैसले का पुरजोर विरोध किया है।
- प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि प्रशासन ने बिना उनकी सहमति के यह जमीन आवंटित कर दी है।
श्मशान भूमि का इतिहास: आदिवासियों की धार्मिक आस्था पर हमला?
झारखंड के आदिवासी समुदाय के लिए श्मशान सिर्फ एक दाह संस्कार स्थल नहीं, बल्कि एक पवित्र स्थान होता है।
- सदियों से आदिवासी समुदाय अपने पूर्वजों की अस्थियां इसी भूमि में समर्पित करते आए हैं।
- इस जगह को धार्मिक अनुष्ठानों और पारंपरिक कर्मकांडों के लिए प्रयोग किया जाता है।
- आदिवासी रीति-रिवाजों में श्मशान भूमि को परंपराओं और पूर्वजों की आत्माओं से जुड़ा स्थान माना जाता है।
हथियारबंद प्रदर्शन: डीसी कार्यालय में गूंजे आदिवासियों के नारे
प्रशासन की इस पहल के खिलाफ आदिवासी समुदाय ने हरवे-हथियार लेकर विरोध प्रदर्शन किया।
- गौड़गोड़ा और बालीगुमा के हजारों ग्रामीण उपायुक्त कार्यालय पहुंचे।
- उन्होंने नारेबाजी करते हुए स्पष्ट चेतावनी दी कि अगर भूमि आवंटन रद्द नहीं किया गया, तो आंदोलन और तेज होगा।
- प्रदर्शनकारियों ने कहा कि अगर प्रशासन ने फैसला वापस नहीं लिया, तो वे कानूनी और जनांदोलन का सहारा लेंगे।
सरकार vs आदिवासी: क्या यह जमीन पर कब्जे की साजिश है?
यह कोई पहली बार नहीं है जब झारखंड में आदिवासी भूमि पर कब्जे का विवाद खड़ा हुआ है।
- इससे पहले रांची, खूंटी और गिरिडीह में भी ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं।
- आदिवासी संगठनों का आरोप है कि सरकार धीरे-धीरे उनकी पारंपरिक भूमि को विकास परियोजनाओं के नाम पर हड़प रही है।
- 2016 में भी खूंटी जिले में एक आदिवासी कब्रगाह को सरकारी भवन के लिए आवंटित करने पर बड़ा विवाद हुआ था।
क्या कहता है कानून?
झारखंड में आदिवासियों की जमीन को लेकर संविधान में विशेष सुरक्षा दी गई है।
- छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (CNT Act) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (SPT Act) के तहत आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों को बेचा या स्थानांतरित नहीं किया जा सकता।
- अगर यह जमीन वास्तव में श्मशान भूमि है, तो इसका स्थानांतरण अवैध हो सकता है।
- इस मामले में अगर आदिवासी समुदाय कोर्ट में जाता है, तो प्रशासन को अपना फैसला वापस लेना पड़ सकता है।
अब आगे क्या?
प्रशासन ने अभी तक कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया है, लेकिन बढ़ते विरोध को देखते हुए जल्द ही इस पर फैसला लिया जा सकता है।
- आदिवासियों ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे बड़े आंदोलन की तैयारी करेंगे।
- राजनीतिक दल भी अब इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया देने लगे हैं।
- संभावना है कि इस मामले को लेकर कोर्ट में याचिका दायर की जा सकती है।
क्या सरकार झुकेगी या आदिवासी समुदाय की जमीन छिन जाएगी?
यह मामला सिर्फ एक सरकारी कार्यालय निर्माण का नहीं, बल्कि आदिवासी अधिकारों और धार्मिक आस्था से जुड़ा है।
अब देखने वाली बात होगी कि प्रशासन क्या रुख अपनाता है –
- क्या आदिवासियों की मांग को मानकर यह भूमि उन्हें वापस दी जाएगी?
- या फिर प्रशासन अपने फैसले पर अड़ा रहेगा और विरोध तेज होगा?
आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर बड़ा फैसला हो सकता है। आपकी इस मामले पर क्या राय है? हमें कमेंट में बताएं।
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