जमशेदपुर में ग्रामीणों ने तीर-धनुष से किया विरोध, प्रशासन की टीम बैरंग लौटी: जानिए क्या है पूरा मामला
जमशेदपुर के सुंदरनगर में जमीन के सीमांकन पर प्रशासनिक टीम का सामना हुआ ग्रामीणों के तीखे विरोध से। जानें कैसे पारंपरिक हथियारों के साथ ग्रामीणों ने विरोध जताया और प्रशासन को लौटना पड़ा बैरंग।
जमशेदपुर के सुंदरनगर अंचल में जमीन विवाद को लेकर स्थानीय ग्रामीणों ने प्रशासनिक टीम का जमकर विरोध किया, जिससे टीम को बिना सीमांकन किए वापस लौटना पड़ा। इस दौरान न केवल पारंपरिक हथियार और तीर-धनुष का इस्तेमाल हुआ, बल्कि विरोध के दौरान लोगों ने पूजा-पाठ और नारेबाजी भी की। यह घटना झोपड़ी मैदान में हुई, जहां प्रशासन की टीम जमीन के सीमांकन और समतलीकरण के लिए पहुंची थी।
सीमांकन करने पहुंची टीम को ग्रामीणों का तीखा विरोध
सुंदरनगर घसियाडीह झोपड़ी मैदान में प्रशासनिक टीम दोपहर करीब 12 बजे जमीन का सीमांकन करने पहुंची थी। दंडाधिकारी मुकेश कुमार और अरविंद तिकों के नेतृत्व में इस टीम में पुलिस बल भी शामिल था। जेसीबी मशीन की मदद से वहां बनी झोपड़ीनुमा संरचनाओं को हटाने और जमीन को समतल करने की तैयारी चल रही थी, तभी स्थानीय ग्रामीणों ने विरोध करना शुरू कर दिया।
ग्रामीणों ने अपने पारंपरिक हथियारों, तीर-धनुष के साथ विरोध जताया और नारों के साथ स्पष्ट संदेश दिया कि वे अपनी भूमि की सुरक्षा के लिए कोई समझौता नहीं करेंगे। जैसे ही प्रशासनिक टीम ने जेसीबी से काम शुरू किया, लोगों ने पूजा-अर्चना कर विरोध का आरंभ किया।
प्रशासन और ग्रामीणों के बीच तनावपूर्ण माहौल
दोनों दंडाधिकारियों ने ग्रामीणों को समझाने की कोशिश की और कहा कि सीमांकन का काम कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है। लेकिन ग्रामीण किसी भी तरह की वार्ता के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने स्पष्ट कहा कि उनके गांव में बाहरी घुसपैठियों को प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा। स्थिति इतनी गंभीर हो गई थी कि एक वक्त ऐसा लगा कि टकराव बढ़ सकता है। हालांकि, प्रशासनिक अधिकारियों की सुझबूझ से स्थिति को बिगड़ने से बचा लिया गया।
ग्रामीणों ने प्रशासन को चेताया कि बिना ग्राम सभा की अनुमति के किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य नहीं होने दिया जाएगा। इस दौरान दंडाधिकारियों ने ग्रामीणों से जमीन से संबंधित कागजात उपलब्ध कराने की मांग की, लेकिन उन्होंने इसे मानने से इनकार कर दिया। स्थिति इतनी तनावपूर्ण हो गई कि पुलिस और ग्रामीणों के बीच नोकझोंक होने लगी।
भूमि विवाद का इतिहास: क्या है असली मामला?
इस जमीन विवाद की जड़ें काफी पुरानी हैं। दंडाधिकारी मुकेश कुमार के अनुसार, संदीप साहू नामक व्यक्ति के दादा ने 1932 में यह जमीन खरीदी थी। संदीप साह ने इस भूमि का एक हिस्सा शिवजी सिंह को बेच दिया था। अब यह विवाद इस 3.30 एकड़ भूमि को लेकर है, जो अभी भी खाली पड़ी हुई है।
जब भी शिवजी सिंह अपनी खरीदी हुई जमीन का सीमांकन और समतलीकरण करने का प्रयास करते हैं, ग्रामीण इसका विरोध शुरू कर देते हैं। कभी यह स्थान धार्मिक स्थल बताया जाता है, तो कभी इसे खेल का मैदान कहकर विरोध किया जाता है। विरोध करने वाले लोगों में गांव के उन वंशजों का भी शामिल होना है, जिनके नाम पर गांव का नाम घसियाडीह पड़ा है। उनका कहना है कि बिना ग्राम सभा की अनुमति के कोई भी बाहरी व्यक्ति गांव की भूमि पर कब्जा नहीं कर सकता।
ग्रामीणों का आरोप: बाहरी घुसपैठियों को नहीं होने देंगे कब्जा
विरोध कर रहे ग्रामीणों का स्पष्ट कहना है कि उनके गांव में बाहरी लोगों का कब्जा नहीं होने देंगे। उनका यह भी आरोप है कि जिस व्यक्ति ने जमीन पर दावा किया है, वह कोल्हान क्षेत्र के विभिन्न स्थानों पर इसी तरह से कब्जा करता रहा है। यह जमीन उनके पूर्वजों की है और वे इसे किसी बाहरी को नहीं सौंप सकते।
ग्रामीणों का कहना है कि बिना ग्राम सभा की अनुमति के किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य नहीं होने दिया जाएगा। प्रशासनिक अधिकारियों ने ग्रामीणों को समझाने का प्रयास किया और उनसे जमीन से संबंधित दस्तावेज दिखाने के लिए कहा, लेकिन ग्रामीण इसके लिए तैयार नहीं थे।
प्रशासन की सुझबूझ से बचा टकराव
विरोध के बीच एक वक्त ऐसा आया जब लगा कि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो सकती है। पुलिस और ग्रामीणों के बीच बढ़ती नोक-झोंक ने टकराव की स्थिति पैदा कर दी थी। लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों ने समझदारी से काम लिया और मामले को शांति से संभाल लिया। उन्होंने स्थिति बिगड़ने से बचाई और टीम को बैरंग लौटने का फैसला लिया।
ग्रामीणों का धैर्य और साहस
इस पूरे मामले में ग्रामीणों का धैर्य और साहस स्पष्ट रूप से दिखाई दिया। उन्होंने प्रशासनिक दबाव के बावजूद अपनी जमीन के अधिकारों के लिए खड़े रहने का साहस दिखाया। उनकी पारंपरिक संस्कृति और सामूहिक भावना ने उन्हें एकजुट होकर इस मुद्दे का सामना करने का हौसला दिया।
आगे क्या होगा?
जमीन विवाद का यह मामला अभी समाप्त नहीं हुआ है। प्रशासन और ग्रामीणों के बीच यह तनावपूर्ण स्थिति आगे भी बनी रह सकती है। प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि कानूनी प्रक्रिया के तहत इस मामले को सुलझाने के प्रयास किए जाएंगे। वहीं, ग्रामीणों ने स्पष्ट कर दिया है कि वे अपनी भूमि की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जाएंगे।
सुंदरनगर में जमीन विवाद को लेकर ग्रामीणों और प्रशासन के बीच की यह जंग इस बात का प्रमाण है कि भूमि विवादों में भावनाएं और परंपराएं कितनी गहराई से जुड़ी होती हैं।
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