Jadugora: आदिवासी समाज का ऐतिहासिक सम्मेलन, संथाली भाषा के लिए उठी आवाज

जादूगोड़ा में आदिवासी सोशियो एजुकेशनल एंड कल्चरल एसोसिएशन (ASEKA) द्वारा आयोजित सम्मेलन में संथाली भाषा और ओलचिकी लिपि को राजभाषा बनाने की मांग उठी। जानिए इस ऐतिहासिक कार्यक्रम के बारे में।

Nov 24, 2024 - 19:06
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Jadugora: आदिवासी समाज का ऐतिहासिक सम्मेलन, संथाली भाषा के लिए उठी आवाज
Jadugora: आदिवासी समाज का ऐतिहासिक सम्मेलन, संथाली भाषा के लिए उठी आवाज

24 नवंबर 2024 : जादूगोड़ा में आदिवासी सोशियो एजुकेशनल एंड कल्चरल एसोसिएशन (ASEKA) द्वारा आयोजित एक दिवसीय सम्मेलन ने आदिवासी समाज और संस्कृति को एक नई दिशा देने की कोशिश की। यह सम्मेलन नरवा पहाड़ यूसिल कॉलोनी स्थित सामुदायिक डेवलपमेंट सेंटर में आयोजित हुआ, जहां आदिवासी समाज के प्रमुख नेताओं और बुद्धिजीवियों ने संथाली भाषा को राजभाषा का दर्जा देने की जोरदार मांग उठाई।

कार्यक्रम की शुरुआत और संथाली की अपील

सम्मेलन की शुरुआत पंडित रघुनाथ मुर्मू और विदु चादान की प्रतिमा पर माल्यार्पण से हुई। इस अवसर पर ASEKA के महासचिव शंकर सोरेन ने कहा कि 1925 में ओलचिकी लिपि का निर्माण हुआ था और आगामी 2025 में इसे 100 साल पूरे होने जा रहे हैं, लेकिन संथाली को राजभाषा का दर्जा देने की मांग अब तक पूरी नहीं हुई है। उन्होंने राज्य सरकार से यह अपील की कि केजी से पीजी तक ओलचिकी स्क्रिप्ट में पढ़ाई शुरू की जाए और संथाली को झारखंड की पहली राज्य भाषा घोषित किया जाए।

संथाली भाषा और ओलचिकी लिपि की ऐतिहासिक अहमियत

संथाली भाषा आदिवासी समुदाय की पहचान है और ओलचिकी लिपि में इसके पढ़ाई के लिए ASEKA ने कई बार आवाज उठाई है। शंकर सोरेन ने बताया कि राज्य के कई संथाल बहुल गांवों में प्राथमिक विद्यालयों में ओलचिकी लिपि में पढ़ाई की जाती है, लेकिन राज्य स्तर पर इसका पर्याप्त समर्थन नहीं है। उनका कहना है कि यदि संथाली को राज्य भाषा बनाया जाए तो यह आदिवासी समाज के लिए एक बड़ी पहचान होगी।

सम्मेलन में उठे अन्य मुद्दे

इस सम्मेलन में ASEKA के अध्यक्ष सुभाष चंद्र मार्डी, प्रोफेसर लखाई बास्के, आसनबनी के परगना हरिपद मुर्मू, माझी बाबा वीरेन टुडू, और बोईता सोरेन जैसे प्रमुख वक्ताओं ने संथाली साहित्यकारों और भाषा के विकास के लिए साझा दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। इन सभी ने संथाली साहित्य के संरक्षण और उसके विकास की दिशा में एकजुट होकर काम करने की अपील की।

आदिवासी समाज के लिए एकजुटता का संदेश

इस सम्मेलन में ASEKA के कार्यकारिणी सदस्यों सालखु मुर्मू, सुरेश मुर्मू, दिलीप मुर्मू, सौरभ हांसदा और अन्य प्रमुख ओलचिकी शिक्षकों और साहित्य प्रेमियों ने भी अपनी भागीदारी की। सभी ने मिलकर आदिवासी संस्कृति और संथाली भाषा के महत्व को रेखांकित किया और समाज में इसके महत्व को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर जोर दिया।

झारखंड की नई दिशा

इस सम्मेलन ने यह भी साबित कर दिया कि झारखंड की नई सरकार के लिए संथाली भाषा और ओलचिकी लिपि के संवर्धन में सबसे बड़ी चुनौती अब राजभाषा का दर्जा दिलवाना है। आदिवासी समुदाय की यह साझा मांग आने वाले समय में राज्य की सामाजिक और सांस्कृतिक नीति को प्रभावित कर सकती है।

आदिवासी समाज का संघर्ष और भविष्य

जादूगोड़ा का यह सम्मेलन एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जहां आदिवासी समाज ने अपने सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा और संथाली भाषा के सम्मान की लड़ाई को और तेज कर दिया है। अब सवाल यह है कि क्या राज्य सरकार इस मुद्दे पर कदम उठाएगी और संथाली को राज्य की आधिकारिक भाषा बनाने की दिशा में कोई ठोस कदम उठाएगी?

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Nihal Ravidas निहाल रविदास, जिन्होंने बी.कॉम की पढ़ाई की है, तकनीकी विशेषज्ञता, समसामयिक मुद्दों और रचनात्मक लेखन में माहिर हैं।