ग़ज़ल - 7 - रियाज खान गौहर, भिलाई
रास्ते में खारो आतिश के सिवा कुछ भी नहीं ....
गजल
रास्ते में खारो आतिश के सिवा
कुछ भी नहीं
हौसला तो देखिए मुझको गिला
कुछ भी नहीं
लोग चाहे जो भी समझे उनको
क्या समझाऊं मैं
जो किया अच्छा किया मैनें बुरा
कुछ भी नहीं
मैं समंदर हूं नदी नालों की
परवाह क्या करूं
सामनें मेरे तिरी अवकात क्या
कुछ भी नहीं
जानें कितनी बार मेरी नांव
डूबी है मगर
है करम मुझपर खुदा का जो हुआ
कुछ भी नहीं
आग तुझसे बुझ नहीं सकती
लगानें के सिवा
है तुम्हारा शौक ये इसके सिवा
कुछ भी नहीं
मैं तडपता ही रहा तेरी
मुहब्बत के लिए
खो दिया सब कुछ मगर मुझको मिला
कुछ भी नहीं
छिन गया सुख चैन भी गौहर
कहूं क्या आपसे
सब्र ही करता रहा अब तक कहा
कुछ भी नहीं
गजलकार
रियाज खान गौहर भिलाई
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