Ghatshila School: छठ उत्सव पर सह सचिव ने किया बड़ा खुलासा! पढ़ाया गया 'आध्यात्मिक विज्ञान का नया युग
घाटशिला के संत नंदलाल स्मृति विद्या मंदिर में छठ पर्व पर क्या खास हुआ? सह सचिव एस के देवड़ा ने छात्रों को 'आध्यात्मिक विज्ञान का नया युग' का क्या महत्व बताया? मानवी प्रधान और निवेदिता साव ने अपने भाषण में इस पर्व के चार दिनों के किस गूढ़ रहस्य को खोलकर रखा? जाने कैसे लोकगीत और भाषण के जरिए नई पीढ़ी को मिली प्राचीन आस्था की शिक्षा!
घाटशिला, 27 अक्टूबर 2025 - जब पूरा देश सूर्योपासना के महापर्व छठ के तीसरे दिन यानी संध्या अर्घ्य की तैयारी कर रहा था, तभी घाटशिला स्थित संत नंदलाल स्मृति विद्या मंदिर में ज्ञान और आस्था का एक अनोखा संगम देखने को मिला।
यह केवल एक सामान्य स्कूल कार्यक्रम नहीं था, बल्कि छात्रों को प्राचीन भारतीय संस्कृति के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक आधार से परिचित कराने का एक महत्वपूर्ण प्रयास था, जिसने सभी की जिज्ञासा को बढ़ा दिया।
‘ आध्यात्मिक विज्ञान का नया युग ’ का खुलासा
विद्यालय में प्रार्थना सभा के दौरान छठ महापर्व को पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण तब पैदा हुआ जब विद्यालय सह सचिव श्री एस के देवड़ा ने छात्रों को 'आध्यात्मिक विज्ञान का नया युग' के महत्व के बारे में बताया।
प्रश्न यह है कि क्या स्कूल का प्रबंधन यह मानता है कि छठ पर्व सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक ऐसी वैज्ञानिक जीवनशैली है, जिसमें सूर्य की किरणों से मिलने वाले स्वास्थ्य लाभ और कठिन उपवास के दौरान शरीर की प्राकृतिक शुद्धि (Detoxification) छिपी हुई है?
भारत में आध्यात्मिक विज्ञान की अवधारणा प्राचीन काल से चली आ रही है। वेदों में सूर्य को ऊर्जा, स्वास्थ्य और जीवन का दाता माना गया है। श्री देवड़ा का यह वक्तव्य छात्रों को यह सोचने पर मजबूर करता है कि कैसे भारतीय पर्व आस्था और आधुनिक विज्ञान के बीच एक मजबूत पुल का निर्माण करते हैं।
चार दिनों का गौरवशाली इतिहास
कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए, कक्षा नौवीं की छात्रा मानवी प्रधान ने पर्व के महत्व पर सुंदर सुविचार प्रस्तुत किए। इसके बाद कक्षा आठवीं की छात्रा निवेदिता साव ने अपने धाराप्रवाह भाषण से पूरे सभा का ध्यान खींचा।
निवेदिता ने छठ पर्व के चार दिनों – नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य – के गूढ़ महत्व को विस्तार से समझाया।
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इतिहास की झलक: छठ पर्व का इतिहास रामायण काल तक जाता है, जब माता सीता ने मुंगेर में पहली बार सूर्य की उपासना की थी, या महाभारत काल में जब द्रौपदी ने पांडवों के लिए यह व्रत किया था।
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अनुशासन की शिक्षा: उन्होंने बताया कि कैसे ये चार दिन पवित्रता, संयम और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का पाठ पढ़ाते हैं।
निवेदिता का भाषण नई पीढ़ी को यह सीख देता है कि पर्व-त्योहारों को सिर्फ छुट्टी का मौका नहीं, बल्कि अपने गौरवशाली इतिहास और संस्कृति को समझने का अवसर मानना चाहिए।
बच्चों के लोकगीत से बँधा समां
इस गंभीर चर्चा के बाद, प्राइमरी विंग के छोटे बच्चों ने छठ के मधुर लोकगीत प्रस्तुत कर समां बाँध दिया। "काँच ही बाँस के बहंगिया" जैसे पारंपरिक गीत जब छोटे बच्चों की मधुर आवाज़ में गूंजे, तो पूरा विद्यालय परिसर भक्ति और प्रेम से सराबोर हो गया।
इस पूरे कार्यक्रम का सफल मंच संचालन कक्षा नौवीं की छात्रा श्रुति अग्रवाल द्वारा किया गया, जिसने यह दर्शाया कि छात्रों को न केवल शैक्षणिक बल्कि सांस्कृतिक गतिविधियों में भी पूरी तरह से तैयार किया जा रहा है।
इस महत्वपूर्ण आयोजन में विद्यालय प्रबंधिका शोभा गनेरीवाल, प्राचार्य डॉ प्रसेनजीत कर्मकार समेत समस्त शिक्षकगण और विद्यार्थी उपस्थित थे। नीलिमा सरकार, मीना सिंह, नेहा मजूमदार, सोमनाथ दे एवं एस एन मुखर्जी जैसे शिक्षकों ने इसे सफल बनाने में विशेष भूमिका निभाई। धन्यवाद ज्ञापन सह शैक्षिक प्रभारी सास्वती राय पटनायक द्वारा दिया गया और प्रार्थना सभा का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ।
यह कार्यक्रम सिर्फ एक रिपोर्ट नहीं, बल्कि घाटशिला के इस विद्यालय का एक अनोखा प्रयास है जो आधुनिक शिक्षा को भारतीय संस्कृति की जड़ों से जोड़ता है।
पाठकों से सवाल:
क्या आपके हिसाब से स्कूलों में छठ जैसे महापर्वों के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व को बताने की यह पहल नई पीढ़ी के लिए जरूरी है? आप इस पर क्या राय रखते हैं? कमेंट करके बताएं।
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