Moonje Ideology : संघ को सैन्य अनुशासन किसने दिया, 20वीं सदी के महानतम राष्ट्रवादी की अनसुनी कहानी
डॉ. मुंजे: लोकमान्य तिलक के समर्थक और हिंदू महासभा के अध्यक्ष, जिनकी प्रेरणा से आरएसएस का ढाँचा तैयार हुआ। क्यों उन्हें राष्ट्रवाद और सैन्य चेतना का सूत्रधार कहा जाता है, जानिए उनकी अनूठी विरासत।
नई दिल्ली, 12 दिसंबर 2025 – भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में कुछ ऐसे विचारधारा निर्माता पुरुष हुए हैं, जिनकी भूमिका केवल आंदोलन तक सीमित नहीं थी, बल्कि उन्होंने पूरे समाज की दिशा तय कर दी। 12 दिसंबर 1872 को जन्मे बालकृष्ण शिवराम मुंजे (Balakrishna Shivram Moonje) भी उन्हीं प्रखर मस्तिष्कों में से एक थे, जिन्हें राष्ट्रवाद और संगठन का अग्रणी सूत्रधार माना जाता है। लोकमान्य तिलक के विचारों से प्रेरित मुंजे ने राष्ट्र को आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता के मार्ग पर ले जाने का संकल्प लिया।
तिलक के शिष्य और राष्ट्रवादी चेतना के जागृतिकर्ता
मुंजे प्रारंभ से ही गहरे सोच-विचार और पक्के इरादों वाले व्यक्ति थे। 20वीं सदी के आरंभ में बंग-भंग और स्वदेशी आंदोलन के दौरान वे सक्रिय रूप से स्वतंत्रता की लड़ाई से जुड़े।
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विचारधारा: उनका मानना था कि राजनीतिक स्वतंत्रता तभी सफल होगी जब भारतीय समाज सांस्कृतिक गौरव के आधार पर जागृत और संगठित होगा।
राजनीति में उनका प्रवेश हिंदू महासभा के माध्यम से हुआ। अपनी स्पष्टवादिता, तर्कशक्ति और सशक्त नेतृत्व क्षमता के बल पर वे शीघ्र ही संगठन में ऊपर उठे। वर्ष 1927-1928 में उन्हें अखिल भारतीय हिंदू महासभा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। उनके नेतृत्व में महासभा ने समाज के हितों की रक्षा और राष्ट्रीय अस्मिता के लिए सशक्त कार्यक्रम चलाए।
संघ (RSS) के सैन्य ढाँचे के अदृश्य शिल्पकार
मुंजे के व्यक्तित्व का सबसे बड़ा योगदान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के निर्माण में माना जाता है। संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार उन्हें अपना राजनीतिक और वैचारिक गुरु मानते थे।
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यूरोप का अनुभव: मुंजे ने यूरोप की यात्रा के दौरान वहाँ के सैन्य प्रशिक्षण संस्थानों को गहनता से देखा। वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि एक महान राष्ट्र की सुरक्षा का आधार केवल संगठित और अनुशासित युवा शक्ति ही हो सकती है।
यही अनुभव संघ की शाखा प्रणाली, गणवेश, शारीरिक प्रशिक्षण और कठोर अनुशासन के निर्माण में आधारशिला बना। उनका दृढ़ विश्वास था कि "राष्ट्र की रक्षा केवल हथियारों से नहीं, बल्कि चरित्रवान और अनुशासित नागरिकों से होती है।"
सैन्य शिक्षा और दूरदृष्टि
1930 के दशक में मुंजे ने राष्ट्रीय रक्षा और स्वदेशी सोच के पक्ष में जोरदार वकालत की। वे चाहते थे कि भारत में युवाओं का सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य हो और देश में ऐसे संस्थान बनें, जो नेतृत्व और राष्ट्रधर्म की शिक्षा दें। उनकी इस दूरदृष्टि ने आगे चलकर कई सैन्य प्रेरित सामाजिक संगठनों की दिशा निर्धारित की।
3 मार्च 1948 को उनका निधन हो गया, लेकिन राष्ट्र के प्रति उनका विचार और संगठनात्मक सिद्धांत आज भी जीवित है। वे केवल एक संगठनकर्ता नहीं, बल्कि एक ऐसे वैचारिक निर्माता थे, जिनके प्रयासों ने आधुनिक भारत के राजनीतिक-सामाजिक चिंतन को गहरी दिशा प्रदान की।
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