Government Negligence : आदिवासी छात्रावास बंद, 200 बच्चे शिक्षा से वंचित! क्या सरकार सो रही है?
पूर्वी सिंहभूम के डुमरिया प्रखंड के लखाईडीह गाँव में नया आदिवासी छात्रावास बंद पड़ा है। 200 से अधिक बच्चे शिक्षा, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। क्या सरकार अब जागेगी? पूरी खबर पढ़ें।
पूर्वी सिंहभूम जिले के डुमरिया प्रखंड के लखाईडीह गाँव की हालत बेहद खराब है। यहाँ के बच्चे शिक्षा और सुविधाओं से वंचित हैं। नया आदिवासी छात्रावास वर्षों से बंद पड़ा है। संसाधनों की कमी ने बच्चों के सपनों को तोड़ दिया है।
यह गाँव पहाड़ी इलाके में बसा है। यहाँ तक पक्की सड़क नहीं पहुँची है। गर्भवती महिलाओं और गंभीर बीमार मरीजों को अस्पताल ले जाना बेहद मुश्किल है। सरकारी योजनाएँ भी यहाँ तक नहीं पहुँचीं। प्रधानमंत्री आवास योजना, पेंशन योजना और माईया सम्मान योजना जैसी योजनाएँ केवल कागज़ों पर चल रही हैं।
200 बच्चों का भविष्य अंधेरे में
लखाईडीह और आसपास के इलाकों के लगभग 200 बच्चे आदिवासी छात्रावासों पर निर्भर हैं। लेकिन दोनों छात्रावास बंद पड़े हैं। नया छात्रावास भी रखरखाव के अभाव में खंडहर बन रहा है।
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नए छात्रावास में लगभग 85 लड़कियाँ फर्श पर सोने को मजबूर हैं।
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यहाँ बिस्तर, फर्नीचर और बिजली की सुविधा नहीं है।
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पीने के लिए शुद्ध पानी और रसोई तक की व्यवस्था नहीं है।
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बच्चों के पास खेलने, सांस्कृतिक गतिविधियों या डिजिटल शिक्षा का कोई साधन नहीं है।
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रोजाना लड़कियों को भोजन के लिए 500 मीटर दूर पुराने छात्रावास जाना पड़ता है।
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पुराने छात्रावास में हालात और भी खराब हैं। एक बेड पर 2-3 बच्चों को ठूँसा गया है।
बिजली कटने पर कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है। सभी सोलर लाइट खराब पड़ी हैं। बच्चों को न पढ़ाई का माहौल मिलता है और न ही सुरक्षा।
गाँव का दौरा और सच्चाई
हाल ही में पूर्व जिला परिषद सदस्य अर्जुन पूर्ति और अधिवक्ता सह समाजसेवी ज्योतिर्मय दास ने गाँव का दौरा किया। उन्होंने पाया कि छात्रावास की हालत बेहद दयनीय है। बच्चों और उनके माता-पिता ने सरकार से मदद की गुहार लगाई।
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को शिकायत
समाजसेवी ज्योतिर्मय दास ने इस मामले को गंभीर मानते हुए पीएमओ और सीएमओ को शिकायत भेजी है। उन्होंने माँग की है कि:
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दोनों छात्रावास तुरंत चालू हों।
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बच्चों को बिस्तर, फर्नीचर, बिजली, शुद्ध पानी और रसोई मिले।
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कंप्यूटर और डिजिटल शिक्षा की सुविधा दी जाए।
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गाँव को पक्की सड़क से जोड़ा जाए।
बयान
ज्योतिर्मय दास का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 21A, 46 और 47 के अनुसार बच्चों को शिक्षा और गरिमा का अधिकार है। लेकिन लखाईडीह गाँव की हालत इन अधिकारों का हनन है। ज़रूरत पड़ी तो न्यायालय का सहारा लिया जाएगा।
वहीं अर्जुन पूर्ति ने कहा कि दशकों से आदिवासी गाँव उपेक्षा झेल रहे हैं। करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद बच्चों तक सुविधा नहीं पहुँच रही। इसका कारण अफसरशाही और ठेकेदारों की लापरवाही है।
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