Hemant Soren Journey: हेमंत सोरेन की चौथी ताजपोशी, इंजीनियरिंग छोड़ कैसे बने सियासत के 'बादशाह'?

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने चौथी बार शपथ लेकर इतिहास रच दिया। जानिए कैसे इंजीनियरिंग छोड़कर राजनीति में आए और कैसे बने झारखंड की राजनीति के सबसे बड़े चेहरे।

Mar 23, 2025 - 17:38
Mar 23, 2025 - 17:47
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Hemant Soren Journey: हेमंत सोरेन की चौथी ताजपोशी, इंजीनियरिंग छोड़ कैसे बने सियासत के 'बादशाह'?
Hemant Soren Journey: हेमंत सोरेन की चौथी ताजपोशी, इंजीनियरिंग छोड़ कैसे बने सियासत के 'बादशाह'?

झारखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर हेमंत सोरेन ने इतिहास रच दिया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनका असली सपना इंजीनियर बनना था? तो फिर उन्होंने राजनीति का रुख क्यों किया? आइए जानते हैं उनकी संघर्ष भरी कहानी, जिसमें सियासत, परिवार और कई बड़े उतार-चढ़ाव शामिल हैं।

इंजीनियरिंग की राह छोड़ राजनीति में एंट्री

हेमंत सोरेन का जन्म 10 अगस्त 1975 को झारखंड के रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में हुआ था। उनके पिता और झारखंड आंदोलन के प्रणेता शिबू सोरेन उस समय आदिवासी जागरूकता अभियान में व्यस्त थे। हेमंत की शुरुआती शिक्षा पटना हाई स्कूल से हुई और फिर उन्होंने बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (BIT), मेसरा में एडमिशन लिया। लेकिन अचानक आई पारिवारिक और राजनीतिक परिस्थितियों ने उनका करियर बदल दिया।

उनके पिता शिबू सोरेन पर शशिनाथ झा हत्याकांड और सांसद रिश्वत कांड की गाज गिरी, जिससे परिवार पर संकट आ गया। इसी दौरान 1995 में उनके बड़े भाई दुर्गा सोरेन विधायक बने लेकिन स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के चलते परिवार को एक मजबूत कंधे की जरूरत थी। ऐसे में हेमंत सोरेन को पढ़ाई छोड़कर राजनीति में उतरना पड़ा।

कैसे बने JMM के रणनीतिकार?

1998 में लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन को दुमका सीट से हार का सामना करना पड़ा। 1999 में उनकी पत्नी रूपी सोरेन को भी बीजेपी के बाबूलाल मरांडी ने हराया। इसी दौरान झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) में संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी हेमंत सोरेन को सौंपी गई।

उन्होंने जेएमएम के छात्र संगठन से शुरुआत की और लगातार पार्टी के लिए मेहनत करते रहे। 2001 में दुमका लोकसभा उपचुनाव में उनके प्रयासों से शिबू सोरेन की बड़ी जीत हुई।

पहले चुनाव में हार, लेकिन फिर छाए राजनीति में

2005 के दुमका विधानसभा चुनाव में जेएमएम ने हेमंत सोरेन को टिकट दिया, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता स्टीफन मरांडी ने बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़कर जीत हासिल की। यह हार उनके लिए बड़ा झटका थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

2009 में उन्हें राज्यसभा सांसद बनाया गया और उसी साल हुए विधानसभा चुनाव में दुमका से जीत दर्ज कर पहली बार विधायक बने। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

पहली बार उपमुख्यमंत्री और फिर मुख्यमंत्री बने

2009 में हेमंत सोरेन विधायक बनने के बाद 2010 में अर्जुन मुंडा सरकार में उपमुख्यमंत्री बने। लेकिन 2013 में जब बीजेपी और जेएमएम का गठबंधन टूटा, तब हेमंत ने कांग्रेस और आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनाई और 13 जुलाई 2013 को पहली बार मुख्यमंत्री बने।

हालांकि, 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने वापसी की और रघुवर दास मुख्यमंत्री बने। इस दौरान हेमंत ने दुमका से हार का सामना किया लेकिन बरहेट सीट से जीत हासिल कर नेता प्रतिपक्ष बने।

2019 में जबरदस्त वापसी, लेकिन 2024 में झटका

2019 के विधानसभा चुनाव में जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन ने शानदार प्रदर्शन किया और हेमंत सोरेन 29 दिसंबर 2019 को दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। लेकिन 2024 में ईडी (ED) की गिरफ्तारी के बाद उन्हें सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा।

हालांकि, जेल से जमानत पर बाहर आते ही उन्होंने 4 जुलाई 2024 को तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इससे पहले उनके पिता शिबू सोरेन और बीजेपी के अर्जुन मुंडा तीन-तीन बार सीएम रह चुके थे, लेकिन हेमंत चौथी बार मुख्यमंत्री बनकर इतिहास रच चुके हैं।

ईडी की गिरफ्तारी के बाद पत्नी कल्पना सोरेन बनीं स्टार प्रचारक

31 जनवरी 2024 को ईडी ने जब हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया, तब उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने कमान संभाली। उन्होंने इंडिया गठबंधन के लिए 100 से अधिक चुनावी सभाएं कीं और झारखंड की राजनीति में अपनी मजबूत पकड़ बना ली।

हेमंत के नेतृत्व में JMM की ऐतिहासिक जीत

झारखंड अलग राज्य बनने के बाद 2005 में JMM को 17 सीटें मिली थीं, लेकिन 2019 में 30 और 2024 में 34 सीटें जीतकर पार्टी ने नया इतिहास रच दिया। हालांकि, 2024 के चुनाव से पहले जेएमएम के दिग्गज नेता चंपई सोरेन ने पार्टी छोड़ दी, जिससे संगठन को बड़ा झटका लगा।

लेकिन हेमंत सोरेन ने अपनी रणनीति से JMM को झारखंड की सबसे मजबूत पार्टी बना दिया है।

झारखंड की राजनीति का अजेय योद्धा?

हेमंत सोरेन की कहानी सिर्फ एक नेता की नहीं, बल्कि संघर्ष, राजनीति और रणनीति की मिसाल है। इंजीनियर बनने का सपना देखने वाले हेमंत ने राजनीति को अपनाया और अब झारखंड के सबसे बड़े नेता बन चुके हैं।

अब सवाल ये है कि क्या आने वाले वर्षों में वो झारखंड की राजनीति पर इसी तरह राज करेंगे या फिर कोई नया मोड़ आएगा? झारखंड की राजनीति में आगे क्या होगा, यह देखने वाली बात होगी!

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Nihal Ravidas निहाल रविदास, जिन्होंने बी.कॉम की पढ़ाई की है, तकनीकी विशेषज्ञता, समसामयिक मुद्दों और रचनात्मक लेखन में माहिर हैं।