Chaibasa Clash: चाईबासा में बालू को लेकर मचा बड़ा संग्राम, ट्रैक्टर और डंपर संचालक क्यों आए आमने-सामने, करोड़ों का राजस्व नुकसान
क्या आप जानते हैं कि झारखंड में सरकार की अस्पष्ट बालू नीति अब सामाजिक संघर्ष का कारण क्यों बन गई है? गोइलकेरा में मंगलवार रात ट्रैक्टर संचालकों ने दर्जनों डंपरों को डेरोवां चौक के पास क्यों रोक दिया? हेमंत सोरेन की सरकार 2019 से बालू घाटों का टेंडर कराने में क्यों विफल रही? अवैध धंधे में सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ता क्यों लिप्त हैं और सरकार को हर महीने कितने करोड़ों का नुकसान हो रहा है? पूरी जानकारी पढ़ें!
चाईबासा, 5 नवंबर 2025 – झारखंड में बालू घाटों को लेकर राज्य सरकार की लंबे समय से चली आ रही अस्पष्ट नीति अब स्थानीय स्तर पर एक बड़े सामाजिक संघर्ष को जन्म दे रही है। पश्चिमी सिंहभूम जिले के गोइलकेरा में हाल ही में एक ऐसा ही गंभीर मामला सामने आया है, जहां बालू खनन और परिवहन के अवैध धंधे में लिप्त ट्रैक्टर और डंपर संचालक सीधे तौर पर आमने-सामने आ गए हैं। इस गुटबाजी ने एनएच 320डी पर तनाव पैदा कर दिया है और यह खुलासा करती है कि हेमंत सोरेन सरकार की विफलता से माफियागिरी किस कदर हावी हो चुकी है।
डेरोवां चौक पर हंगामा: ट्रैक्टर संचालकों ने रोके दर्जनों डंपर
बालू के परिवहन को लेकर ट्रैक्टर और डंपर संचालकों के बीच टकराव मंगलवार (4 नवंबर 2025) की रात चरम पर पहुंच गया।
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टकराव का स्थान: गोइलकेरा-मनोहरपुर मार्ग (एनएच 320डी) में डेरोवां चौक के पास ट्रैक्टर संचालकों ने बालू का परिवहन कर रहे दर्जनों डंपरों को अचानक रोक दिया।
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विरोध का कारण: ट्रैक्टर संचालकों का मुख्य विरोध यह था कि प्रशासन द्वारा सिर्फ बालू लदे ट्रैक्टर-ट्रॉलियों को ही निशाना बनाया जा रहा है और डंपरों से हो रही बालू ढुलाई पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
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मांग: उनकी मांग स्पष्ट है: अगर बालू का धंधा होगा, तो डंपरों के साथ-साथ ट्रैक्टरों को भी समान रूप से बालू ढोने की अनुमति मिलनी चाहिए।
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राजनीतिक हस्तक्षेप: ट्रैक्टर संचालकों ने इस मामले में मनोहरपुर के झामुमो विधायक जगत माझी को भी पूरी जानकारी दी है।
2019 से टेंडर नहीं: करोड़ों का राजस्व नुकसान
पश्चिमी सिंहभूम जिले के आधे क्षेत्र में भरडीहा, पोकाम, दलकी, रायम और माराश्रम में कोयल नदी से बड़े पैमाने पर बालू खनन होता है।
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सरकारी विफलता: सबसे बड़ी समस्या यह है कि 2019 से इन घाटों का टेंडर नहीं हो रहा है। हेमंत सोरेन की सरकार इन घाटों से बालू खनन को वैधता प्रदान करने में पूरी तरह विफल रही है।
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अवैध धंधा: इसी विफलता का फायदा उठाकर घाटों से बड़े पैमाने पर अवैध खनन किया जा रहा है, जिसमें डंपर और ट्रैक्टर संचालक समान रूप से लिप्त हैं।
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माफिया का राज: अवैध बालू के धंधे में लिप्त अधिकांश कारोबारी सत्तारूढ़ दलों के कार्यकर्ता हैं, जिन्हें क्षेत्र के जनप्रतिनिधि और नेता खुलेआम सपोर्ट करते हैं।
यह अवैध खनन और परिवहन से हर महीने झारखंड सरकार को करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है, जबकि यह अवैध धंधा अब गोइलकेरा में रोजगार का सबसे बड़ा साधन बन गया है। लोग मनरेगा जैसे सरकारी काम छोड़कर इस मुनाफे वाले धंधे में उतर रहे हैं।
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