Bagbera Honor: ‘स्वाश्रित सम्मान’ से सशक्त हुईं महिलाएं, जानिए इस पहल की खासियत!
बागबेड़ा में स्वाश्रित सम्मान से आत्मनिर्भर महिलाओं को पहचान मिली। जानिए कैसे यह पहल महिलाओं के लिए मील का पत्थर बन सकती है और इसका इतिहास क्या कहता है?

बागबेड़ा: बागबेड़ा की महिलाओं के लिए एक नई उम्मीद बनकर उभरा स्वाश्रित सम्मान, जो उनके आत्मनिर्भर बनने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है। महिला दिवस और होली के अवसर पर जिला पार्षद डॉ. कविता परमार के नेतृत्व में आयोजित "ललक" कार्यक्रम ने न सिर्फ महिलाओं को प्रेरित किया, बल्कि उनके हुनर को भी पहचान दिलाने का काम किया।
यह आयोजन केवल एक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि बागबेड़ा क्षेत्र की महिलाओं के लिए आर्थिक स्वतंत्रता की ओर एक बड़ा कदम था। स्वरोजगार से जुड़ी 40 महिलाओं को सम्मानित किया गया, जिन्होंने झाड़ू निर्माण, आचार निर्माण, कपड़ा व्यवसाय, ब्यूटीशियन, फास्ट फूड ठेला, टिफिन सेवा, मुर्गी और सूकर पालन जैसे क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता हासिल की है।
कार्यक्रम की भव्य शुरुआत
कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. कविता परमार और आठों पंचायतों की महिला जनप्रतिनिधियों द्वारा दीप प्रज्वलित कर की गई। इसके बाद महिला समूह की बहनों ने "इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना" गीत गाकर सभी को प्रेरित किया। इस दौरान महिलाओं के चेहरे पर आत्मनिर्भर बनने का जोश और जुनून साफ नजर आ रहा था।
डॉ. कविता परमार ने अपने संबोधन में कहा,
"ललक कार्यक्रम केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि महिलाओं में आत्मनिर्भर बनने की इच्छा जागृत करने का प्रयास है। हमें अपनी दोहरी भूमिका निभाते हुए खुद को आत्मनिर्भर बनाना होगा। बागबेड़ा क्षेत्र की महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़कर उन्हें बाज़ार उपलब्ध कराने का कार्य किया जाएगा।"
कैसे महिलाओं को बनाया जा रहा है आत्मनिर्भर?
इस कार्यक्रम के तहत बागबेड़ा की 8 पंचायतों की महिलाओं को संगठित किया गया है। पंचायतों की प्रमुख सदस्याओं रिंकू देवी, आशा जी, बसंती हाइब्रू, शकुंतला बिरुली, पिंकी देवी, रेखा देवी, काकुली मुखर्जी और पूजा देवी ने अपने-अपने पंचायतों में चल रहे समूहों के बारे में जानकारी दी।
इस दौरान महिलाओं को बताया गया कि झाड़ू बनाने, आचार व्यवसाय, कपड़ा व्यापार, मुर्गी और सूकर पालन, फास्ट फूड ठेला और टिफिन सेवा जैसे छोटे-छोटे व्यवसाय कैसे उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बना सकते हैं।
"लाइव टॉक शो" ने बदली सोच
इस कार्यक्रम का सबसे खास हिस्सा रहा "लाइव टॉक शो", जिसमें संगीता मंडल और पुष्पा देवी ने अपने संघर्षों की कहानी साझा की। उन्होंने बताया कि कैसे विपरीत परिस्थितियों में महिला समूहों की मदद से वे आत्मनिर्भर बनीं और अब खुद रोजगार चला रही हैं।
संगीता मंडल ने कहा,
"जब घर की आर्थिक स्थिति खराब थी, तब महिला समूह से जुड़े और छोटे व्यापार से शुरुआत की। आज मैं आत्मनिर्भर हूं और अन्य महिलाओं को भी सशक्त बना रही हूं।"
"स्वाश्रित सम्मान" से बढ़ी महिलाओं की हिम्मत
कार्यक्रम का सबसे भावुक और प्रेरणादायक क्षण था जब बागबेड़ा की 40 आत्मनिर्भर महिलाओं को "स्वाश्रित सम्मान" से नवाजा गया। यह सम्मान नेचर संस्था द्वारा प्रदान किया गया, और डॉ. कविता परमार ने सभी सम्मानित महिलाओं की सराहना करते हुए कहा कि यह सिर्फ एक शुरुआत है।
इसके अलावा सहिया बहनों को भी उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया। यह पहल महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक अहम कदम थी, जो आने वाले समय में और अधिक महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करेगी।
इतिहास में झांकें तो…
अगर इतिहास पर नजर डालें, तो महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कई प्रयास हुए हैं। 1975 में भारत में "महिला सशक्तिकरण वर्ष" घोषित किया गया था, और तब से लेकर अब तक कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। स्व-रोजगार महिला संघ (SEWA) 1972 में शुरू हुआ, जिसने लाखों महिलाओं को रोजगार के अवसर दिए।
बागबेड़ा में "स्वाश्रित सम्मान" उसी परंपरा को आगे बढ़ाने का प्रयास है, जहां महिलाओं को न केवल स्वरोजगार दिया जा रहा है, बल्कि उन्हें सामाजिक पहचान भी मिल रही है।
होली का रंग, महिलाओं के संघर्ष का संग
कार्यक्रम के अंत में अबीर और गुलाल लगाकर होली की शुभकामनाएं दी गईं। यह क्षण महिलाओं के लिए किसी नए उत्सव से कम नहीं था, क्योंकि वे न सिर्फ आर्थिक रूप से मजबूत हो रही थीं, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी अपनी पहचान बना रही थीं।
कार्यक्रम में मौजूद प्रमुख हस्तियां:
मुखिया जमुना हंसदा, उमा मुंडा
पंचायत समिति सदस्य झरना मिश्रा, मनीषा हाइब्रू, गीतिका प्रसाद, अंजलि चौहान, लक्ष्मी बोदरा
500 से अधिक महिलाओं की उपस्थिति
क्या "स्वाश्रित सम्मान" महिलाओं की तकदीर बदलेगा?
इस पहल से यह साफ है कि अगर महिलाओं को सही मंच और मार्गदर्शन मिले, तो वे आत्मनिर्भर बन सकती हैं। बागबेड़ा की यह छोटी शुरुआत आने वाले समय में बड़े बदलाव की नींव रख सकती है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या यह पहल और जिलों में भी लागू होगी? क्या अन्य राज्यों में भी महिलाओं के लिए ऐसे सम्मान समारोह होंगे?
जो भी हो, बागबेड़ा की महिलाओं ने यह साबित कर दिया है कि आत्मनिर्भरता की राह पर कदम बढ़ाने के लिए केवल एक शुरुआत की जरूरत होती है!
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