Ramdas Soren Asthi Visarjan : रजरप्पा में दामोदर नदी में बाबा रामदास सोरेन की अस्थियों का विसर्जन, झारखंड के अमर योद्धा को अंतिम विदाई
झारखंड आंदोलन के योद्धा और पूर्व मंत्री बाबा रामदास सोरेन की अस्थियों का विसर्जन रजरप्पा स्थित दामोदर नदी में हुआ। जानें उनके जीवन, योगदान और अंतिम विदाई के भावुक क्षण।

झारखंड आंदोलन के अग्रणी योद्धा, जन-जन के नेता और पूर्व शिक्षा मंत्री बाबा रामदास सोरेन की पवित्र अस्थियों का आज विधिविधान के साथ रजरप्पा स्थित पावन दामोदर नदी में विसर्जन किया गया। इस अवसर पर उनके परिजनों, समर्थकों और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के कार्यकर्ताओं की भारी उपस्थिति रही। श्रद्धालुओं ने उन्हें “प्रकृति का प्यारा लाल” कहते हुए अंतिम जोहार अर्पित किया।
रजरप्पा और दामोदर नदी का आध्यात्मिक महत्व
दामोदर नदी, जिसे झारखंड की जीवनरेखा कहा जाता है, धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से विशेष महत्व रखती है। रजरप्पा स्थित माँ छिन्नमस्तिका मंदिर हिंदू परंपराओं में अस्थि विसर्जन के सबसे प्रमुख स्थलों में गिना जाता है।
बाबा सोरेन की अस्थियों का इस पवित्र नदी में विसर्जन उनके प्रकृति और झारखंड से गहरे जुड़ाव का प्रतीक माना गया।
JMM नेताओं और कार्यकर्ताओं ने कहा—
"बाबा दा अब सदैव प्रकृति के अंश बनकर झारखंड और झारखंडियत की रक्षा करेंगे।"
बाबा रामदास सोरेन का प्रेरणादायक जीवन
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जन्म: 1 जनवरी 1963, पूर्वी सिंहभूम के घोराबंदा गाँव में एक किसान परिवार में।
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सामाजिक जीवन की शुरुआत: ग्राम प्रधान के रूप में, जहाँ से उन्होंने जनसेवा की राह पकड़ी।
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राजनीतिक करियर:
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JMM के एक मजबूत स्तंभ बने।
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2009, 2019 और 2024 में घाटशिला विधानसभा से विधायक चुने गए।
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2024 में हेमंत सोरेन सरकार में शिक्षा, साक्षरता और पंजीयन मंत्री बने और शिक्षा सुधारों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
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उनकी सादगी और संघर्षशील व्यक्तित्व ने उन्हें “नन्हा सिपाही” से “आदिवासी समाज के अभिभावक” तक का सफर तय कराया। झारखंड आंदोलन में उनकी सक्रिय भूमिका ने उन्हें लोगों के दिलों में अमर कर दिया।
राजनीति से परे एक जनसेवक
बाबा सोरेन न केवल एक राजनेता थे, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलन के भी अगुवा रहे। आदिवासी अधिकारों की लड़ाई, शिक्षा के प्रसार और झारखंडियत की रक्षा के लिए उनका जीवन समर्पित रहा।
उनका मानना था—
"झारखंड केवल एक राज्य नहीं, बल्कि हमारी अस्मिता और हमारी आत्मा है।"
भावुक विदाई का क्षण
अस्थि विसर्जन के समय माहौल भावुक हो उठा।
परिवारजनों और समर्थकों ने नदी किनारे “अंतिम जोहार” कहकर उन्हें विदाई दी।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा—
"रामदास दा हमेशा हमारे मार्गदर्शक रहेंगे। उनकी कमी अपूरणीय है, लेकिन उनके विचार और संघर्ष हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते रहेंगे।"
JMM कार्यकर्ताओं ने उन्हें “झारखंड का अमर योद्धा” और “प्रकृति का लाल” कहकर याद किया।
झारखंड की राजनीति और समाज में अपूरणीय क्षति
बाबा रामदास सोरेन की मृत्यु को झारखंड की राजनीति और सामाजिक आंदोलन के लिए एक अप्रत्याशित और अपूरणीय क्षति माना जा रहा है।
उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि गाँव से लेकर शहर तक हर वर्ग के लोग उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि देने पहुंचे।
रजरप्पा में दामोदर नदी के जल में बाबा रामदास सोरेन की अस्थियों का विसर्जन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि उनके जीवन, संघर्ष और झारखंड से अटूट जुड़ाव का प्रतीक बन गया।
झारखंड आंदोलन के इस सच्चे सिपाही को आज अंतिम विदाई दी गई, लेकिन उनकी स्मृतियाँ, विचार और संघर्ष आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे।
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