पेरिस 2024 ओलंपिक्स में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाले अमन सेहरावत की प्रेरक कहानी
पेरिस 2024 ओलंपिक्स में भारत के युवा पहलवान अमन सेहरावत ने ब्रॉन्ज मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। जानिए उनकी संघर्षपूर्ण यात्रा और ओलंपिक सफलता की कहानी।
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पेरिस: पेरिस 2024 ओलंपिक्स में भारत के 21 वर्षीय युवा पहलवान अमन सेहरावत ने शुक्रवार को पुरुषों की 57 किलोग्राम वेट कैटेगरी में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर देश का गौरव बढ़ाया। उन्होंने प्यूर्टो रिको के डेरियन टोई क्रूज़ को 13-5 के शानदार स्कोर से हराकर यह उपलब्धि हासिल की। अमन की इस जीत ने उन्हें भारत के सबसे युवा ओलंपिक मेडलिस्ट के रूप में स्थापित कर दिया, और उनके करियर में एक और सुनहरा अध्याय जोड़ा।
अमन सेहरावत कौन हैं?
अमन सेहरावत का नाम भारतीय कुश्ती के इतिहास में पहले ही दर्ज हो चुका है, जब उन्होंने U23 रेसलिंग चैंपियनशिप में भारत के लिए पहला गोल्ड मेडल जीता था। उनकी प्रेरणा दो बार के ओलंपिक मेडलिस्ट सुशील कुमार से मिली, जो अमन के आदर्श रहे हैं। 11 साल की उम्र में अपने माता-पिता को खोने के बाद, अमन का पालन-पोषण उनके दादा मंगेराम सेहरावत ने किया।
चतरसाल स्टेडियम से ओलंपिक की राह
दिल्ली के प्रतिष्ठित चतरसाल स्टेडियम में ट्रेनिंग लेने वाले अमन ने अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण के बल पर कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में गोल्ड मेडल जीते हैं। चतरसाल स्टेडियम, जो कई ओलंपिक मेडलिस्ट्स को तैयार कर चुका है, अमन के करियर की नींव बन गया। अमन ने न सिर्फ अपने ट्रेनिंग में शानदार प्रदर्शन किया, बल्कि उन्होंने राष्ट्रीय चयन ट्रायल्स में टोक्यो ओलंपिक सिल्वर मेडलिस्ट रवि कुमार दहिया को हराकर पेरिस 2024 के लिए अपना स्थान सुनिश्चित किया।
ओलंपिक की चुनौतियाँ और सफलता
पेरिस 2024 ओलंपिक्स में, अमन सेहरावत ने पहले राउंड में नॉर्थ मैसेडोनिया के व्लादिमीर एगॉरोव को 10-0 से हराया, फिर क्वार्टरफाइनल में अल्बानिया के जेलिमखान अबाकानोव को 12-0 की तकनीकी श्रेष्ठता के साथ मात दी। हालांकि, सेमीफाइनल में उन्हें जापान के टॉप-सीड रेसलर रेई हिगुची के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और ब्रॉन्ज मेडल मैच में शानदार वापसी की।
अमन की भावुकता और समर्पण
ब्रॉन्ज मेडल जीतने के बाद, अमन ने इस जीत को अपने दिवंगत माता-पिता और भारत को समर्पित किया। उन्होंने कहा, "मेरे माता-पिता हमेशा चाहते थे कि मैं एक पहलवान बनूं। उन्हें ओलंपिक्स के बारे में कुछ भी नहीं पता था, लेकिन उन्होंने मुझे हमेशा इस दिशा में प्रेरित किया। मैं यह मेडल अपने माता-पिता और देश को समर्पित करता हूँ।"
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