Delhi Impact: टेक्नोलॉजी ने छीनी किताबों की अहमियत! क्या बच पाएगी पढ़ने की संस्कृति?
डिजिटल युग में विद्यार्थियों की किताबों से बढ़ती दूरी क्यों चिंता का विषय बन गई है? इंटरनेट और स्मार्टफोन ने कैसे पढ़ने की आदत को प्रभावित किया? जानिए इस मुद्दे की पूरी सच्चाई।

वाराणसी: क्या आपको याद है जब किताबों की खुशबू और पन्ने पलटने की आवाज़ पढ़ाई का असली आनंद हुआ करती थी? लेकिन अब स्मार्टफोन और इंटरनेट की दुनिया ने इस आदत को लगभग खत्म कर दिया है। आधुनिक डिजिटल युग में विद्यार्थियों की किताबों से बढ़ती दूरी एक गंभीर चिंता का विषय बन गई है। क्या तकनीक ने हमें ज्ञान से दूर कर दिया है? आइए, जानते हैं इसकी पूरी कहानी।
डिजिटल युग में किताबों की अनदेखी
एक दौर था जब लाइब्रेरी में घंटों बिताकर गहराई से अध्ययन करना एक आम बात थी। लेकिन अब गूगल सर्च और यूट्यूब वीडियो ने इस आदत को खत्म कर दिया है। विद्यार्थी लंबे लेख पढ़ने की बजाय इंस्टेंट आंसर की तलाश में रहते हैं। वे गूगल, ई-बुक्स और ऑडियो-विजुअल कंटेंट पर निर्भर हो गए हैं, जिससे गहराई से अध्ययन की प्रवृत्ति खत्म हो रही है।
पिछले कुछ दशकों में शिक्षा प्रणाली में भी बड़ा बदलाव आया है। अब पढ़ाई परीक्षा केंद्रित हो गई है, जिससे विद्यार्थी केवल अंकों पर ध्यान देने लगे हैं। वे गाइड और शॉर्ट नोट्स का उपयोग कर परीक्षा पास करने पर फोकस कर रहे हैं, जिससे पुस्तकों का महत्व कम होता जा रहा है।
क्यों घट रही है पुस्तकों की लोकप्रियता?
- इंटरनेट की आसान उपलब्धता – किसी भी विषय पर जानकारी के लिए अब किताबों की जरूरत नहीं महसूस होती। एक क्लिक में सब कुछ उपलब्ध हो जाता है।
- सोशल मीडिया की लत – इंस्टाग्राम, फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म ने पढ़ाई का समय छीन लिया है।
- ऑनलाइन एजुकेशन – गूगल, यूट्यूब, ऑनलाइन कोर्स और डिजिटल क्लासरूम ने किताबों का स्थान ले लिया है।
- पढ़ने की आदत में बदलाव – विद्यार्थी अब गहराई से अध्ययन करने के बजाय जल्दबाजी में छोटे-छोटे लेख या वीडियो देखकर संतुष्ट हो जाते हैं।
विद्यार्थियों पर इसका क्या असर पड़ रहा है?
ज्ञान की सतही समझ – डिजिटल माध्यमों से मिली जानकारी संक्षिप्त होती है, जिससे विषयों की गहराई से समझने की क्षमता घट रही है।
एकाग्रता में कमी – लगातार स्क्रीन देखने से विद्यार्थियों का ध्यान केंद्रित करने की क्षमता प्रभावित हो रही है।
कल्पनाशक्ति का ह्रास – साहित्य, उपन्यास और कविताएँ पढ़ने से रचनात्मकता बढ़ती है, लेकिन डिजिटल कंटेंट के कारण यह क्षमता घट रही है।
संस्कृति और मूल्यों से दूरी – किताबें समाज, संस्कृति और इतिहास का प्रतिबिंब होती हैं। इनसे दूरी बढ़ने से विद्यार्थी अपने मूल्यों से कटते जा रहे हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
शोधकर्ताओं का मानना है कि डिजिटल युग में संतुलन बनाए रखना जरूरी है। बच्चों को किताबों से जोड़ने के लिए अभिभावकों और शिक्षकों को विशेष प्रयास करने चाहिए।
विद्यार्थियों को फिर से किताबों की ओर कैसे लाया जाए?
लाइब्रेरी संस्कृति को बढ़ावा दें – स्कूल और कॉलेजों में पुस्तकालयों को अधिक रोचक और आधुनिक बनाया जाए।
पढ़ाई में विविधता लाएँ – केवल पाठ्यपुस्तकों तक सीमित न रहते हुए विद्यार्थियों को साहित्य, इतिहास और अन्य ज्ञानवर्धक पुस्तकों को पढ़ने के लिए प्रेरित करें।
डिजिटल और पारंपरिक पढ़ाई में संतुलन – डिजिटल माध्यमों का सही उपयोग करें, लेकिन किताबों को पढ़ने की आदत को पुनर्जीवित करें।
पुस्तक मेला और साहित्यिक कार्यक्रम – विद्यार्थियों को पुस्तक प्रेमी बनाने के लिए इन्हें बढ़ावा देना जरूरी है।
तकनीक ने दुनिया को आसान बना दिया है, लेकिन इसका सही इस्तेमाल करना आवश्यक है। पुस्तकों की जगह कोई नहीं ले सकता, क्योंकि वे केवल जानकारी का स्रोत ही नहीं बल्कि बुद्धिमत्ता, नैतिकता और संस्कृति का भी आधार हैं। विद्यार्थियों को डिजिटल और पारंपरिक पढ़ाई में संतुलन बनाते हुए किताबों की ओर लौटना चाहिए। यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाली पीढ़ियाँ ज्ञान के असली स्रोत से वंचित रह जाएँगी।
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