POPE Francis : पोप फ्रांसिस तबीयत बिगड़ी, दे सकते है इस्तीफा, उनके अंतिम संस्कार की रिहर्सल शुरू
पोप फ्रांसिस लगातर स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझ रहे है। उनका निमोनिया का इलाज चल रहा है। वे जल्द ही अपने पद से इस्तीफा दे सकते है।

पोप फ्रांसिस,रोम लेटेस्ट न्यूज: कैथोलिक ईसाई धर्मगुरु पोप फ्रांसिस जल्द ही अपने ऐतिहासिक पद से इस्तीफा दे सकते है। वे पिछले कुछ महीनों से निमोनिया जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे है। 88 साल के पोप इटलीkके रोम स्पताल में भर्ती है। उन्हे सांस लेने में दिक्कत हो रही है। जिसके चलते उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला किया है। अगर वो ऐसा करते है तो पोप का पद छोड़ने वाले बीते 600 साल में वे दूसरे व्यक्ति है। वर्तमान में वे कैथोलिक चर्च के प्रमुख बने हुए है।
पोप क्यों है धार्मिक पद
आपको बता दें कि ईसाई धर्म में पोप का पद सबसे बड़ा और अहम माना जाता है। वेटिकन सिटी लगातार उनका हेल्थ बुलेटन दे रहा है। अभी वो ये बताने में असमर्थ है कि पोप फ्रांसिस स्वस्थ होकर कब वापस आयेंगे। 2 हजार साल के इतिहास में बहुत कम कैथोलिक चर्च के पोप ने अपनी स्वेच्छा से इस्तीफा दिया है। इतिहास में सिर्फ चार पोप ऐसे हुए है। जिन्होंने अपने मन से इस्तीफा दिया है। पोप बेनेडिक्ट ने 2005 में पद संभालने के बाद 2013 में स्वास्थ समस्या के चलते इस्तीफा दिया है। उन्होने 600 सालों के इतिहास में पहली बार ऐसा किया था। इस्तीफे के बाद उन्हें पोप इमिरेट्स की उपाधि दी थी। उनसे पहले पोप ग्रेगरी ने 1415 वर्ष, सेल्स्टाइन 1294 और पोप बेनेडिक्ट ने 1045 में अपने मन से इस्तीफा दिया था।
क्या होती है इस्तीफे की प्रक्रिया
रोमन कैथोलिक चर्च के पद से पोप के इस्तीफे देने की प्रक्रिया को रेन्यूसिएशन कहते है। पोप ऐसा तब करते है जब उन्हें कोई स्वास्थ्य संबंधी परेशानी होती है। या तो वो व्याक्तिगत कारणों कारणों के चलते ऐसा करते है। पोप को अपने इस्तीफे की जानकारी आधिकारिक तौर पर लिखित देनी होती है। जिसे बकायदे कैनन लॉ के अनुसार तैयार किया जाता है। इस्तीफे में कारण और तारीख लिखी होती है। इस्तीफे के बाद पोप का पद खाली हो जाता है। इसके बाद कार्डिनल की एक बैठक बुलाई जाती है। बैठक में नए पोप को लेकर चर्चा होती है। चयन प्रक्रिया निधन के बाद से शुरू हो जाती है।
पोप के लिए कौन करता है वोटिंग
नए पोप को चुनने का अधिकार सिर्फ कार्डिनल को होता है। ये कार्डिनल कैथोलिक चर्च के उच्चतम पादरी होते है। ये पोप के करीबी माने जाते है। और चर्च के प्रशासन में अहम भूमिका निभाते हैं। यहां 80 वर्ष से कम कार्डिनल को वोट डालने का अधिकार होता है। चुनाव प्रक्रिया पूरी तरह से गुप्त होती है। बाहरी दुनिया से कोई भी पादरी संपर्क नहीं कर सकता। पूर्व के पोप ही कार्डिनल नियुक्त करते है। कार्डिनल पहले अर्चबिशप होते हैं। कार्डिनल बनने के बाद उन्हें एक लाल रंग की टोपी दी जाती है। ये टोपी बलिदान और निष्ठा का प्रतीक होती हैं। बता दें कि दुनियाभर में 230 कार्डिनल होते है। वोटिंग में 2/3 का बहुमत हासिल करना होता है। वोटिंग दिन में कई बार होती है। यह प्रक्रिया बहुमत मिलने तक चलती है। वहां एक चिमनी होती है। चिमनी से अगर काला धुआं निकलता है तो इसका मतलब पोप नहीं चुना गया। वहीं सफेद धुएं का मतलब नया पोप चुन लिया गया है। फिर वेटिकन बालकनी में आधिकारिक घोषणा होती है। और नए पोप बाहर आकर आशीर्वाद देते है।
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