South Hindi Controversy : क्या भाषा से बंट रहा है भारत?

भारत में हिंदी विवाद फिर से गर्माया! दक्षिण और पूर्वोत्तर राज्यों में हिंदी को थोपने के विरोध में प्रदर्शन, क्या हिंदी से एकता बढ़ेगी या विभाजन? जानें पूरी कहानी!

Mar 24, 2025 - 15:45
Mar 24, 2025 - 15:55
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South Hindi Controversy : क्या भाषा से बंट रहा है भारत?
South Hindi Controversy : क्या भाषा से बंट रहा है भारत?

भारत में हिंदी भाषा विवाद कोई नया मुद्दा नहीं है। विशेष रूप से दक्षिणी और पूर्वोत्तर राज्यों में यह बहस लंबे समय से चली आ रही है। हाल ही में, हिंदी को राष्ट्रीय संपर्क भाषा बनाने की चर्चा ने फिर से इस मुद्दे को गर्मा दिया है। लेकिन क्या हिंदी वास्तव में देश को जोड़ रही है, या फिर भाषाई पहचान का संकट खड़ा कर रही है? आइए जानते हैं इस विवाद की पूरी कहानी।

दक्षिणी भारत में हिंदी का विरोध

दक्षिण भारत में तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल जैसे राज्यों में हिंदी का विरोध ऐतिहासिक रूप से गहराई से जुड़ा हुआ है। ये राज्य तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम जैसी द्रविड़ भाषाओं का गढ़ हैं, जो हिंदी से पूरी तरह भिन्न हैं।

 इतिहास में झांकें:

  • 1937: ब्रिटिश शासन के दौरान मद्रास प्रेसिडेंसी में स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य करने का प्रयास हुआ, जिसका जबरदस्त विरोध हुआ।
  • 1965: केंद्र सरकार द्वारा हिंदी को राष्ट्रीय भाषा घोषित करने की कोशिश ने तमिलनाडु में हिंदी-विरोधी आंदोलन को जन्म दिया। इस दौरान कई प्रदर्शनकारियों की जान भी गई।

 मौजूदा स्थिति:

  • भाषाई वर्चस्व का डर: दक्षिण भारत में लोगों का मानना है कि हिंदी को बढ़ावा देने से उनकी स्थानीय भाषाएँ और संस्कृति कमजोर होंगी। वे इसे 'हिंदी साम्राज्यवाद' के रूप में देखते हैं।
  • शिक्षा नीति का विरोध: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 की त्रिभाषा नीति जिसमें हिंदी को शामिल करने की बात थी, को तमिलनाडु ने पूरी तरह खारिज कर दिया।
  • राजनीतिक मुद्दा: डीएमके और एआईएडीएमके जैसी पार्टियाँ हिंदी को केंद्र सरकार की जबरदस्ती मानती हैं और इसका विरोध करती हैं।

 हालिया विवाद:

  • 2022: गृह मंत्री अमित शाह के बयान कि "हिंदी को संपर्क भाषा बनाया जाना चाहिए" पर भारी विरोध हुआ।
  • मेडिकल और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में हिंदी अनिवार्य करने की बात ने दक्षिण भारत के छात्रों में असंतोष बढ़ा दिया।

पूर्वोत्तर भारत में हिंदी का मुद्दा

पूर्वोत्तर राज्यों असम, मणिपुर, मेघालय, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में भी हिंदी का प्रभाव सीमित रहा है। यहाँ के लोग अपनी स्थानीय भाषाओं को अधिक महत्व देते हैं।

 ऐतिहासिक नजरिया:

  • 1960-70 के दशक में हिंदी को बढ़ावा देने की कोशिशों का विरोध किया गया क्योंकि इसे स्थानीय भाषाओं की पहचान पर हमला माना गया।
  • यहाँ की भाषाएँ जैसे असमिया, बोडो, मणिपुरी, नागा भाषा हिंदी से पूरी तरह अलग हैं।

 वर्तमान चुनौतियाँ:

  • स्थानीय भाषाओं का संरक्षण: पूर्वोत्तर के राज्यों का मानना है कि हिंदी को अनिवार्य करने से उनकी मातृभाषाएँ खतरे में पड़ जाएँगी।
  • शिक्षा में हिंदी की अनिवार्यता: 2022 में अमित शाह ने कहा था कि "पूर्वोत्तर में कक्षा 10 तक हिंदी अनिवार्य की जाएगी।" इस पर मेघालय, नगालैंड और मणिपुर में तीव्र विरोध हुआ।
  • संस्कृति के विलुप्त होने का डर: पूर्वोत्तर भारत पहले ही मुख्यधारा से अलग-थलग महसूस करता है। ऐसे में हिंदी को थोपा जाना उनके लिए अपनी संस्कृति को खोने जैसा है।

 हालिया घटनाएँ:

  • असम: असम गण परिषद (AGP) और अन्य संगठनों ने हिंदी को बढ़ावा देने की नीति पर सवाल उठाए।
  • नगालैंड और मणिपुर: यहाँ के स्थानीय संगठनों ने हिंदी अनिवार्यता के खिलाफ प्रदर्शन किए।

केंद्र सरकार की स्थिति

भारत सरकार का कहना है कि हिंदी राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक है। संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत हिंदी को संघ की राजभाषा का दर्जा दिया गया है। सरकार का दावा है कि हिंदी के साथ-साथ स्थानीय भाषाओं को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। हालाँकि, गैर-हिंदी भाषी राज्य इसे एकतरफा नीति के रूप में देखते हैं।

समाधान क्या है?

भारत की बहुभाषी पहचान ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है। ऐसे में किसी एक भाषा को थोपना एकता के बजाय विभाजन का कारण बन सकता है।

  • स्थानीय भाषाओं को प्राथमिकता देने वाली नीतियाँ बनानी होंगी।
  • त्रिभाषा नीति को लचीला बनाया जाना चाहिए।
  • राजनीति के बजाय भाषाई संवेदनशीलता पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

क्या हिंदी को बढ़ावा देना जरूरी है या क्षेत्रीय भाषाओं को मजबूत करना चाहिए? इस पर आपकी क्या राय है? हमें कमेंट में बताएं!

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Manish Tamsoy मनीष तामसोय कॉमर्स में मास्टर डिग्री कर रहे हैं और खेलों के प्रति गहरी रुचि रखते हैं। क्रिकेट, फुटबॉल और शतरंज जैसे खेलों में उनकी गहरी समझ और विश्लेषणात्मक क्षमता उन्हें एक कुशल खेल विश्लेषक बनाती है। इसके अलावा, मनीष वीडियो एडिटिंग में भी एक्सपर्ट हैं। उनका क्रिएटिव अप्रोच और टेक्निकल नॉलेज उन्हें खेल विश्लेषण से जुड़े वीडियो कंटेंट को आकर्षक और प्रभावी बनाने में मदद करता है। खेलों की दुनिया में हो रहे नए बदलावों और रोमांचक मुकाबलों पर उनकी गहरी पकड़ उन्हें एक बेहतरीन कंटेंट क्रिएटर और पत्रकार के रूप में स्थापित करती है।