Jharkhand Leadership: पूर्व सीएम चंपाई सोरेन को मिला आदिवासी संगठन की कमान, घुसपैठ और धर्मांतरण पर बड़ा बयान!
पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन आदिवासी सावता सुसार आखड़ा के मुख्य संयोजक बने। संगठन आदिवासी परंपराओं की रक्षा और धर्मांतरण व घुसपैठ के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है। जानिए पूरी खबर!

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन अब आदिवासी सावता सुसार आखड़ा के मुख्य संयोजक बन गए हैं। यह संगठन आदिवासी परंपराओं को बचाने और घुसपैठ व धर्मांतरण के खिलाफ आवाज उठाने के लिए गठित किया गया है। सोमवार को झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा से सैकड़ों आदिवासियों ने इस संगठन की सदस्यता ली, जिससे इसकी ताकत और प्रभाव बढ़ता दिख रहा है।
संस्था का उद्देश्य:
यह संगठन खासकर झारखंड और उससे सटे राज्यों में आदिवासियों की रूढ़िवादी परंपराओं को बचाने, उनके धार्मिक परिवर्तन को रोकने और बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा जमीन हथियाने के खिलाफ संघर्ष कर रहा है। चंपाई सोरेन ने इस संगठन की भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि यह लड़ाई अब पूरे राज्य में जोर पकड़ेगी और आने वाले समय में इसके व्यापक नतीजे सामने आएंगे।
झारखंड में आदिवासियों की जमीन पर संकट?
पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने जोर देकर कहा कि झारखंड, खासकर संताल परगना और कोल्हान क्षेत्र में आदिवासियों की जमीनें तेजी से लूटी जा रही हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा आदिवासियों को फंसाकर उनकी जमीनें हथियाई जा रही हैं। साथ ही, धर्मांतरण का खतरा भी बढ़ रहा है, जिससे आदिवासी समाज की पहचान पर संकट मंडरा रहा है।
इतिहास पर नजर डालें तो झारखंड में आदिवासियों के भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए कई कानून बने हैं, जिनमें संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम और छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम शामिल हैं। लेकिन इन कानूनों के बावजूद, बड़े पैमाने पर आदिवासी भूमि का हनन जारी है।
झारखंड सरकार पर सीधा हमला!
चंपाई सोरेन ने झारखंड सरकार पर कड़ा हमला बोला और हाल की घटनाओं को सरकार की नाकामी का परिणाम बताया। उन्होंने चाईबासा के जगन्नाथपुर में हुए लोमहर्षक हादसे का जिक्र करते हुए कहा कि राज्य में आदिवासियों की सुरक्षा का कोई ठोस उपाय नहीं किया गया है।
उन्होंने आरोप लगाया कि झारखंड बनने के 24 साल बाद भी आदिवासियों की स्थिति नहीं सुधरी। उन्होंने कहा,
"अगर पीड़ित आदिवासी परिवार के पास खुद का पक्का मकान होता, तो उनके बच्चे आग से जलकर नहीं मरते। यह सरकार की नाकामी को दर्शाता है।"
उन्होंने आगे कहा कि राज्य में वृद्धा पेंशन, मइयां सम्मान योजना जैसी योजनाएं बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं। गिरिडीह में हुई सांप्रदायिक घटना पर भी उन्होंने प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि अगर सरकार और पुलिस सक्रिय होती, तो ऐसी घटना नहीं घटती।
आगे क्या?
आदिवासी सावता सुसार आखड़ा के संयोजक के रूप में चंपाई सोरेन की भूमिका अब और महत्वपूर्ण हो गई है। आने वाले समय में यह संगठन झारखंड, बंगाल और ओडिशा में अपनी जड़ें मजबूत करेगा और आदिवासियों की पहचान, भूमि और संस्कृति की रक्षा के लिए संघर्ष करेगा।
झारखंड में आदिवासी राजनीति अब एक नए दौर में प्रवेश कर रही है। देखना होगा कि चंपाई सोरेन की यह अगुवाई आदिवासी समाज को किस दिशा में ले जाती है और सरकार इस पर कैसी प्रतिक्रिया देती है।
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