रतन टाटा का चमत्कारी कदम: TISS के 115 कर्मचारियों की नौकरियां कैसे बचाईं? जानिए पूरी कहानी!
रतन टाटा का चमत्कारी हस्तक्षेप: TISS के 115 कर्मचारियों की नौकरियां बची, जानें कैसे!
टाटा समूह की टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस (TISS) में 115 कर्मचारियों को नौकरी से हटाने की तैयारी कर ली गई थी, लेकिन रतन टाटा के हस्तक्षेप से सभी की नौकरी बच गई है।
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस (TISS) ने 28 जून को अपने मुंबई, हैदराबाद, गुवाहाटी और मुंबई के परिसरों में कार्यरत 115 शिक्षक और शिक्षकेत्तर कर्मचारियों को हटाने का नोटिस जारी कर दिया था। सबको नोटिस भेजा गया था कि उनका कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू नहीं किया जाएगा और 30 जून उनका आखिरी वर्किंग डे होगा।
जब रतन टाटा को इस मामले की जानकारी मिली, तो उन्होंने तुरंत हस्तक्षेप किया। टाटा एजुकेशन ट्रस्ट और टाटा संस के एमिरट्स चेयरमैन रतन टाटा ने TISS के पदाधिकारियों से बातचीत की और कर्मचारियों के लिए जरूरी पैसों को उपलब्ध कराया। इसके बाद, संस्था ने कर्मचारियों को नौकरी से हटाने के नोटिस को वापस ले लिया और सभी को काम जारी रखने का आदेश दिया।
TISS की स्थापना 1936 में टाटा समूह ने की थी। इसे शुरुआत में सर दोराबजी टाटा ने टाटा ग्रेजुएट स्कूल ऑफ सोशल वर्क के नाम से शुरू किया था, लेकिन 1944 में इसका नाम बदलकर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस रख दिया गया। 1964 में इसे डिम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा मिला और 2023 में केंद्र सरकार ने इसे सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित संस्थान में बदल दिया। यह संस्थान UGC द्वारा पूर्णत: वित्त पोषित है और UGC के दिशा-निर्देशों के तहत टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस सोसाइटी द्वारा संचालित और शासित है।
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