Lucknow Hospital Ghapla: सरकारी स्वास्थ्य तंत्र पर उठे बड़े सवाल

लखनऊ के सरकारी अस्पताल में हुए ताज़ा घोटाले ने पूरे स्वास्थ्य विभाग को हिला दिया है। इलाज के नाम पर रिश्वतखोरी, दवाओं की कालाबाज़ारी और लापरवाही के कारण आम जनता की जान दांव पर लग गई है। जानिए पूरा सच इस रिपोर्ट में।

Aug 25, 2025 - 13:49
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Lucknow Hospital Ghapla: सरकारी स्वास्थ्य तंत्र पर उठे बड़े सवाल
Lucknow Hospital Ghapla: सरकारी स्वास्थ्य तंत्र पर उठे बड़े सवाल

लखनऊ, जिसे नवाबों का शहर कहा जाता है, आज एक ऐसे घोटाले की वजह से सुर्खियों में है जिसने पूरे उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य तंत्र की पोल खोल दी है। सरकारी अस्पताल में इलाज कराने पहुंचे मरीजों के परिजनों ने जिस सच्चाई को उजागर किया, उसने आम जनता को झकझोर कर रख दिया है।

रिश्वत और दलाली का जाल

जानकारी के अनुसार, मरीजों को भर्ती करने से लेकर दवाइयाँ दिलाने तक हर जगह रिश्वतखोरी का खेल चल रहा था। कई मरीजों ने आरोप लगाया कि बिना "जेब गर्म" किए उनका इलाज ठीक से नहीं किया जा रहा था। ऑपरेशन कराने के लिए ₹5000 से लेकर ₹20,000 तक की अवैध वसूली के आरोप लगे हैं।

दवाइयों की कालाबाज़ारी

जांच में यह भी सामने आया कि अस्पताल में आने वाली मुफ्त की सरकारी दवाइयाँ ब्लैक में बेची जा रही थीं। जिन दवाओं को मरीजों को मुफ्त मिलना चाहिए था, वही दवाएँ बाहर की दुकानों पर महंगे दामों पर बिक रही थीं। नतीजा यह हुआ कि गरीब मरीज या तो बिना दवा के घर लौट गए या कर्ज़ लेकर दवाएँ खरीदने को मजबूर हुए।

लापरवाह डॉक्टर और नर्सें

कई मरीजों ने बताया कि डॉक्टर समय पर वार्ड में चक्कर नहीं लगाते। नर्सों के रवैये को लेकर भी सवाल खड़े हुए हैं। एक महिला मरीज के परिजनों ने मीडिया को बताया कि "जब तक हमने नर्स को पैसे नहीं दिए, तब तक इंजेक्शन तक नहीं लगाया गया।" यह बयान अपने आप में बहुत कुछ कह देता है।

इतिहास गवाह है

अगर हम इतिहास पर नज़र डालें तो लखनऊ का स्वास्थ्य तंत्र पहले भी विवादों में रहा है। 2017 में गोरखपुर का BRD मेडिकल कॉलेज ऑक्सीजन कांड आज भी लोगों को याद है, जिसमें बच्चों की मौत ने पूरे देश को हिला दिया था। अब लखनऊ का यह मामला फिर उसी पुराने घाव को ताज़ा कर रहा है कि क्या सचमुच हमारे सरकारी अस्पताल सिर्फ "पैसा कमाने का अड्डा" बन गए हैं?

सरकार पर सवाल

जैसे ही यह मामला मीडिया में उछला, विपक्ष ने योगी सरकार को घेरना शुरू कर दिया। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने आरोप लगाया कि "सरकार केवल विज्ञापनों में स्वास्थ्य व्यवस्था सुधारने का दावा करती है, जबकि असलियत जमीनी स्तर पर बिल्कुल अलग है।"

आम जनता की बेबसी

लखनऊ जैसे बड़े शहर में जब हालात ऐसे हैं तो छोटे कस्बों और गांवों में क्या स्थिति होगी, यह आसानी से समझा जा सकता है। गरीब और मध्यम वर्गीय लोग निजी अस्पताल का खर्च नहीं उठा पाते, और सरकारी अस्पतालों में उन्हें सिर्फ धक्के और रिश्वत का सामना करना पड़ता है।

जांच का आदेश

मामले के सामने आने के बाद उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य मंत्री ने तुरंत जांच के आदेश दे दिए हैं। उन्होंने कहा कि "किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा।" लेकिन जनता का सवाल है कि क्या सिर्फ जांच और बयान से हालात सुधर जाएंगे?

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।